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गौतम रास : परिशीलन
गौतम स्वामी के नाम की महिमा
गौतम गणधर जीवन-साधना, योग-साधना और मोक्षसाधना कर विश्व के कल्याणकारी साधक बन गए । उनकी अनुपम साधना महावीर-शासन की परम्परा के लिये अनुकरणीय एवं आदर्श बन गई । उनकी प्रशस्त साधना और गुणों को देखकर जहाँ श्रमण केशीकुमार जैसे प्राचार्य "संशयातीत सर्वश्रुतमहोदधि" कह कर अभिवन्दन करते हैं वहीं शास्त्रकार "क्षमाश्रमण महामुनि गौतम" एवं "सिद्ध, बुद्ध, अक्षीण महानस भगवान् गौतम' कहकर नमन करते हैं। परवर्ती आचार्यगण तो इन्हें “समग्र अरिष्ट/अनिष्टों के प्रनाशक, समस्त अभीष्ट अर्थ/ मनोकामनाओं के पूरक, सकल लब्धि-सिद्धियों के भण्डार, योगीन्द्र, विध्नहारी एवं प्रातः स्मरणीय मानकर गौतम नाम का जप करने का विधान करते हुए उल्लसित हृदय से गुणगान करते हैं ।”
महिमा मंडित गौतम शब्द का अर्थ करते हुए कहते हैं :-"गौ” अर्थात् कामधेनुः "त" अर्थात् तरु/कल्पवृक्ष और "म" अर्थात् चिन्तामणि रत्न । इसी अर्थ / भावना को प्रकट करते हुए विनयप्रभोपाध्याय गौतम रास में स्पष्टतः कहते हैं :
"चिन्तामणि कर चढीय उ आज, सुरतरु सारइ वंछिय काज,
कामकुम्भ सहु वशि हुअए । । कामगवी पूरइ मन-कामी, अष्ट महासिद्धि प्रावइ धामि,
सामि गोयम अनुसरउ ए ।।४२।।"
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