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________________ गणधर गौतम : परिशीलन था ! फिर भी आपने स्नेह भंग कर मेरे हृदय को टूक-टूक कर डाला ! क्या यही आपकी प्रभुता थी ?" इस प्रकार गौतम के वेदना का क्रन्दन उठ रहा नाम पर ही निःश्वास भरते रहे थे । अणु - अणु में से प्रभु के विरह की था । वे स्वयं को भूलकर, प्रभु के हुए अन्तर् वेदना को व्यक्त कर ५९ ऐसी दयनीय एवं करुणस्थिति में भी उनके प्राँसुओं को पोंछने वाला, भग्न हृदय को आश्वासन देने वाला और गहन शोक के सन्ताप को दूर करने वाला इस पृथ्वीतल पर आज कोई न था । अनेक आत्माओं का आशा स्तम्भ, अनेक जीवों का उद्धारक और निपुण खिवैया भी आज विषम हताशा के गहन वात्याचक्र में फंस गया था । विचार- परिवर्तन श्रौर केवलज्ञान भगवान् महावीर के प्रति गौतम का अगाध / असीम अनुराग ही उनके केवलज्ञान की प्राप्ति में बाधक बन रहा था । किन्तु उनकी इस भूल को बतलाने वाला यहाँ न कोई तीर्थंकर था और न कोई श्रमण या श्रमणी ही इस समय उनके पास उपस्थित थे । इस समय गौतम एकाकी, केवल एकाकी थे । Jain Educationa International वेदनानुभूति जनित विलाप और उपालम्भात्मक प्राक्रोश उद्गारों के द्वारा प्रकट हो जाने पर गौतम का मन कुछ शान्त / हलका हुआ । अन्तर् कुछ स्थिर और स्वस्थ हुआ । सोचनेविचारने और वस्तुस्थिति समझने की शक्ति प्रकट हुई । साचने For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003811
Book TitleGautam Ras Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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