SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गौतम रास : परिशीलन "हे महावीर ! मुझ रंक पर यह असहनीय बज्रपात आपने कैसे कर डाला ? मुझे मझधार में छोड़कर कैसे चल दिये ? अब मेरा हाथ कौन पकड़ेगा? मेरा क्या होगा? मेरी नौका को कौन पार लगायेगा? हे प्रभो ! हे प्रभो !! आपने यह क्या गजब ढा दिया? मेरे साथ कैसा अन्याय कर डाला? विश्वास देकर विश्वास भंग क्यों किया? अब मेरे प्रश्नों का उत्तर कौन देगा? मेरी शंकाओं का समाधान कौन करेगा? मैं किसे महावीर, महावीर कहूँगा? अब मुझे हे गौतम ! कहकर प्रेम से कौन बुलाएगा? करुणासिन्धु भगवन् मेरे किस अपराध के बदले आपने ऐसी नृशंस कठोरता बरत कर अन्त समय में मुझे दूर कर दिया ? अब मेरा कौन शरणदाता बनेगा ? वास्तव में मैं तो आज विश्व में दीन-अनाथ बन गया ? प्रभो ! आप तो सर्वज्ञ थे न ! लोक-व्यवहार के ज्ञाता भी थे न ! ऐसे समय में तो सामान्य लोग भी स्वजन सम्बन्धियों को दूर से अपने पास बुला लेते हैं, सोख देते हैं । प्रभो ! आपने ता लाक-व्यवहार का भा तिलांजलि दे दी और मुझे दूर भगा दिया ! प्रभो! पापको जाना था तो चले जाते, पर इस बालक को पास में ता रखते ! मैं अबोध बालक को तरह आपका अंचल चरण पकड़ कर आपके मार्ग में बाधक नहीं बनता ! मैं आपसे केवलज्ञान की भिक्षा-याचना भी नहीं करता। ओ महावीर ! क्या आप भूल गये ? मैं तो आपके प्रति असोम अनुराग के कारण "कैवल्य" को भो तुच्छ समझता Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003811
Book TitleGautam Ras Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy