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गौतम रास : परिशीलन
दर्शन चारित्र को प्राप्त करके भी यदि कोई श्रमण-ब्राह्मण की निन्दा-विकथा करता है तो भले ही अपने मन में उन्हें अपना मित्र समझे, तदपि स्वयं का परलोक बिगाड़ता है।
गौतम की शिक्षा उसे चभ गई और वह अविनय-पूर्वक उठकर चलने लगा । गौतम को उसका यह व्यवहार अखर गया । पुनः आवाज देकर कहा-आयुष्मन् ! किसी श्रमणमाहण के मुख से एक भी धर्म वाक्य अथवा शिक्षा मिली हो तो मानना चाहिये कि इसने मुझे सत्य मार्ग समझाया है । ऐसा समझकर ऐसे उपदेशक का पूज्य बुद्धि से आदर-सत्कार करना चाहिए । यहाँ तक कि मंगलकारी देव या देव मन्दिर के समान उसकी उपासना करनी चाहिए।
गौतम के ये प्रेमपूर्ण शब्द उदक पेढाल पुत्र के अन्तर को स्पर्श कर गये और कृतज्ञता व्यक्त की तथा श्रद्धा-भक्ति पूर्वक अपना आग्रह त्याग कर भगवान् महावीर के चरणों में स्वसमर्पण कर उनकी परम्परा को स्वीकार कर लिया।
स्कन्दक परिव्राजक :
भगवती सूत्र के द्वितीय शतक के प्रथम उद्देशक सूत्र १० से ५४ तक में स्कन्दक परिव्राजक का प्रसंग प्राप्त है। तदनुसार श्रावस्ती नगरी में कात्यायन गोत्रीय स्कन्दक नामक परिव्राजक रहता था । वैशालिक-श्रावक पिंगल नामक निर्ग्रन्थ ने स्कन्दक से पांच प्रश्नों का उत्तर देने के लये कहा । प्रश्न थे :
१. लोक सान्त है या अनन्त है ? २. जीव सान्त है या अनन्त है ?
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