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गणधर गौतम : परिशीलन
अत्यन्त प्रमुदित हुए और श्रद्धाभक्ति पूर्वक भिक्षा प्रदान की । बाद में वह गौतम स्वामी के साथ ही भगवान् महावीर के दर्शनार्थ समवसरण में गया । भगवान् की देशना सुनकर प्रतिबुद्ध हुप्रा, दीक्षा ग्रहण की और उसी भव में मोक्ष गया ।
बालक का हृदय बालक के साथ बालक बनकर ही जीता जा सकता है । कुमार प्रतिमुक्त द्वारा अंगुली पकड़ कर चलने पर भी उसे भिड़का नहीं, बल्कि उसके साथ उसके राजमहल तक जाकर उसके हृदय को आकृष्ट कर लिया । यह घटना तेजोमय गुरु गौतम की मधुरता, स्नेहशीलता और सरलता की परिचायक है ।
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उदक पेढाल पुत्र :
सूत्रकृतांग सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध का सातवां अध्ययन नालन्दकीय नामक है । नालन्दा में ही गौतम और उदक पेढाल पुत्र की चर्चा होने से इस अध्ययन का नाम भी नालन्दकीय पड़ गया / रखा गया । यह विचार-विनिमय श्रमणोपासक लेप की उदकशाला शेषद्रव्या के निकट हस्तियाम वन खण्ड में हुआ था । उदक पेढाल भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का निर्ग्रन्थ था । एक समय गणधर गौतम उसी वन खण्ड में पधारे । उदक पेढाल पुत्र हृदय में कुछ सन्देह थे, उनका समाधान प्राप्त करने वे गौतम के समीप आये और सविनय प्रश्न किये । मुख्यतः दो प्रश्न थे ।
गौतम ने सयुक्ति एवं दृष्टान्तों द्वारा उसके दोनों प्रश्नों का समाधान एवं हितपूर्ण शिक्षा प्रदान करते हुए कहाहे श्रायुष्मन् ! जो मनुष्य पाप कर्मों से मुक्त होने के लिये ज्ञान
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