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गौतम रास : परिशीलन
और अधो सिर होकर बैठते थे। ध्यान कोष्ठक अर्थात् सब ओर से मानसिक क्रियाओं का अवरोध कर अपने ध्यान को एक मात्र प्रभु के चरणारविन्द में केन्द्रित कर बैठते थे। बेले-बेले निरन्तर तप का अनुष्ठान करते हुए संयमाराधना तथा तन्मूलक अन्यान्य तपश्चरणों द्वारा अपनी आत्मा को भावित/संस्कारित करते हुए विचरण करते थे।
प्रथम प्रहर में स्वाध्याय करते थे। दूसरे प्रहर में देशना देते थे; ध्यान करते थे । तीसरे प्रहर में पारणे के दिन अत्वरित, स्थिरता पूर्वक, अनाकुल भाव से मुखवस्त्रिका, वस्त्रपात्र का प्रतिलेखन/प्रमार्जन कर, प्रभु की अनुमति प्राप्त कर, नगर या ग्राम में धनवान्, निर्धन और माध्यम कुलों में क्रमागत-किसी भी घर को छोड़े बिना भिक्षाचर्या के लिए जाते थे । अपेक्षित भिक्षा लेकर, स्वस्थान पर प्राकर, प्रभु को प्राप्त भिक्षा दिखाकर और अनुमति प्राप्त कर गोचरी/भोजन करते थे ।
इस प्रकार हम देखते हैं कि इन्द्रभूति अतिशय ज्ञानी होकर भी परम गुरु-भक्त और आदर्श शिष्य थे।
ज्ञाताधर्मकथा में प्रार्य सुधर्म के नामोल्लेख के साथ जो गणधरों के विशिष्ट गुणों का वर्णन किया गया है उनमें गणधर इन्द्रभूति का भी समावेश हो जाता है। वर्णन इस प्रकार है :
"वे जाति सम्पन्न (उत्तम मातृपक्ष वाले) थे। कुल सम्पन्न (उत्तम पितृपक्ष वाले) थे । बलवान, रूपवान, विनयवान, ज्ञानवान, क्षायिक सम्यक्त्व सम्पन्न, साधन सम्पन्न थे। प्रोजस्वी थे। तेजस्वी थे। वचस्वी थ । यशस्वी
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