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________________ गणधर गौतम : परिशीलन २१ इन्द्रभूति का व्यक्तित्व--दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात् गौतम ने प्रतिज्ञा की कि यावज्जीवन मैं षष्ठ भक्त तप करूंगा, अर्थात् बिना चूक/अन्तराल के दो दिन का उपवास, एक दिन एकासन में पारणा (एक समय भोजन) और पुनः दो दिन का उपवास करता रहूंगा। और, वे अप्रमत्त होकर उत्कट संयम पथ/साधना मार्ग पर चलने लगे। वे प्रतिदिन भगवान् महावीर को एक प्रहर धर्मदेशना के पश्चात् समवसरण में सिंहासन के पाद-पीठ पर बैठ कर एक प्रहर तक देशना देते । गौतम को विशिष्ट जोवनचर्या, दुष्कर साधना और बहमुखो व्यक्तित्व का वर्णन भगवतीसूत्र और उपासकदशांग सूत्र में इस प्रकार प्राप्त होता है : श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी गोतम गोत्रीय इन्द्रभूति नामक अनगार उग्र तपस्वो थे । दोप्त तपस्वीकर्मों को भस्मसात करने में अग्नि के समान प्रदीप्ततप करने वाले थे। तप्त तपस्वा थे अर्थात् जिनको देह पर तपश्चर्या की तोत्र झलक व्याप्त थो। जो कठोर एवं विपुल तप करने वाले थे। जा उराल-प्रबल साधना में सशक्त थे । धारगुण-परम उत्तम-जिनको धारण करने में अद्भुत शक्ति चाहिए-ऐसे गुणों के धारक थे । प्रबल तपस्वो थे। कठोर ब्रह्मचर्य के पालक थे । देहिक सार-सम्भाल या सजावट से रहित थे। विशाल तेजालेश्या का अपने शरीर के भीतर समेटे हुए थे । ज्ञान की अपेक्षा से चतुर्दश पूर्वधारो और चार ज्ञान-मति, श्रुत, अवधि और मनपर्यव ज्ञान के धारक थे। सर्वाक्षर सन्निपात जैसो विविध (२८) लब्धियों के धारक थे। महान् तेजस्वी थे। वे भगवान् महावोर से न अतिदूर और न अति समीप ऊर्ध्वजानु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003811
Book TitleGautam Ras Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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