________________
गौतम रास : परिशीलन
में उत्पत्ति हो गई, पर उसकी मिट्टी ध्रुव है । मिट्टी पहले भी थी और अब भी है । पुन: देखिये - दूध का रूप विनाश होने पर दधि रूप को उत्पत्ति है, तदपि गोरस कायम रहता है, शाश्वत रहता है ।
२०
इस त्रिपदी को हृदयंगम कर, चिन्तन-मनन पूर्वक श्रवगाहन कर, इन्द्रभूति ने इसी त्रिपदी को माध्यम बनाया और भगवान् ने जो-जो अर्थ प्रकट किये उन सब को सूत्रबद्ध कर द्वादशांगी गणिपिटक की रचना की । इसीलिए शास्त्रों में गणधरों को द्वादशांगी निर्माता कहा जाता है ।
गणधर - पद -- जिस प्रकार प्रत्येक प्राणी तीर्थंकर नाम कर्म का बन्ध नहीं कर पाता, विरले व्यक्ति ही बीस स्थानक के पदों की विशिष्टतम एवं उत्कट साधना कर तीर्थंकर नाम-कर्म का उपार्जन करते हैं वैसे ही सामान्य प्राणी गणधर नाम-कर्म का बन्ध नहीं कर पाता, अपितु इने-गिने उत्कृष्टतम साधक ही बीस स्थानक पदों की उत्कट प्राराधना / अनुष्ठान कर गणधर नाम-कर्म का उपार्जन करते हैं । इस पद की प्राप्ति अनेक भवों से समुपार्जित महापुण्य के उदय में आने पर ही होती है । जिस प्रकार तीर्थंकर पद विशिष्ट अतिशयों का बोधक है उसी प्रकार गणधर पद भी विशिष्ट अतिशयों / लब्धिसिद्धियों का द्योतक है । इन्द्रभूति की अनेक जन्मों की उत्कृष्ट साधना थी कि इस भव में उस प्रकृष्ट पुण्यराशि के उदय में आने के कारण दीक्षा ग्रहण करते ही तीर्थंकर महावीर के प्रथम गणधर और द्वादशांगी निर्माता बनने का अविचल सौभाग्य प्राप्त कर सके ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org