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गणधर गौतम : परिशीलन
महावीर ने कहा--- "विगमेइ वा” विगम/नष्ट होता है ।
इन्द्रभूति का मानस पुनः संशयशोल हो उठा। सोचने लगे---यदि विगम ही विगम होगा, तो एक दिन सब नष्ट हो जाएगा, संसार पूर्णतः रिक्त हो जाएगा । अतः संशय-निवारण हेतु पुनः प्रश्न किया
"भंते ! किं तत्त्वम् ।" भगवन् ! तत्त्व क्या है ? पुनः महावीर ने उत्तर दिया"धुएत्ति वा" ध्र व शाश्वत रहता है ।
यह उत्तर सुनते ही इन्द्रभूति को समाधान मिल गया, उनका संशय दूर हो गया।
इस त्रिपदी का निष्कर्ष यह है कि पर्याय दृष्टि में प्रत्येक वस्तु में उत्पाद और व्यय | नाश होता है, किन्तु द्रव्य दृष्टि से जा कुछ है वह ध्र व है, नित्य है, शाश्वत है।
यह त्रिपदी प्रत्येक पदार्थ/वस्तु पर घटित होती है । विश्व में ऐसा कोई पदार्थ नहीं है कि जिस पर यह घटित न हो। प्रत्येक सत वस्त द्रव्य रूप से सदैव नित्य है, शाश्वत है। द्रव्य यदि द्रव्य रूपता का परित्याग करदे, तो जीव जीव नहीं रह सकता और अजीव अजीव नहीं रह सकता। यदि सत् असत् रूप में परिणत हो जाए तो सारी व्यवस्था गड़बड़ा जाएगी। चेतन हो अथवा जड़, किन्तु इस सीमा रेखा का कोई उल्लंघन नहीं कर सकता। जैसे देखिये- एक घड़ा है, वह फूट गया। घट का रूप नष्ट हो गया, ठीकरियों के रूप
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