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________________ गौतम रास : परिशीलन गणधर - पद - आवश्यक चूर्णि और महावीर चरित्र के अनुसार इन्द्रभूति श्रादि ग्यारह विद्वान् आचार्य प्रभु का शिष्यत्व अंगीकार करने के पश्चात् क्रमशः भगवान महावीर के समक्ष कुछ दूर पर अंजलिबद्ध नत मस्तक होकर खड़े हो गए । उस समय कुछ क्षणों के लिये देवों ने वाद्य निनाद बन्द किये और जगद्वन्द्य महावीर ने अपने कर-कमलों से उनके शिरों पर सौगन्धिक रत्न चूर्ण डाला और इन्द्रभूति आदि सब को सम्बोधित करते हुए कहा- 'मैं तुम सब को तीर्थ की अनुज्ञा देता हूँ, गणधर पद प्रदान करता हूँ।' इस प्रकार भगवान् ने अपने तीर्थ / संघ की स्थापना कर ग्यारह गणधर घोषित किये । इनमें प्रथम गणधर इन्द्रभूति गौतम थे । ग्यारह प्राचार्यों का विशाल शिष्य समुदाय उन्हीं का रहा, जिनकी कुल संख्या ४४०० थी । १८ द्वादशांगी की रचना शिष्यत्व अंगीकार करने के पश्चात् गणधर इन्द्रभूति श्रमण भगवान महावीर के समीप श्राये और सविनय वन्दना - नमस्कार के पश्चात् जिज्ञासा पूर्वक प्रश्न किया "भंते किं तत्त्वम् ! " भगवन् ! तत्त्व क्या है ? महावीर ने कहा । "उप्पन्नेइ वा” उत्पाद / उत्पन्न होता है । इस उत्तर से इन्द्रभूति की जिज्ञासा शान्त नहीं हुई । वे सोचने लगे कि यदि उत्पन्न ही उत्पन्न होता रहा तो सीमित पृथिवी में उसका समावेश कैसे होगा ? अतः पुनः प्रश्न किया - "भंते ! किं तत्त्वम्" भगवन् ! तत्त्व क्या है ? Jain Educationa International ---- For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003811
Book TitleGautam Ras Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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