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________________ गणधर गौतम : परिशीलन २३ थ । क्रोध, मान, माया, लोभ पर विजय प्राप्त कर चुके थे। इन्द्रियों का दमन कर चुके थे। निद्रा और परीषहों को जीतने वाले थे । जीवित रहने की कामना और मृत्यु के भय से रहित थे। उत्कट तप करने वाले थे। उत्कृष्ट संयम के धारक थे । करण सत्तरी और चरण सत्तरी का पालन करने में और इन्द्रियों का निग्रह करने वालों में प्रधान थे। प्रार्जव, मार्दव, लाघव/कौशल, क्षमा, गुप्ति और निर्लोभता के धारक थे। विद्या-प्रज्ञप्ति आदि विद्याओं एवं मन्त्रों के धारक थे। प्रशस्त ब्रह्मचर्य के पालक थे। वेद और नय शास्त्र के निष्णात थे। भांति-भांति के अभिग्रह धारण करने में कुशल थे । उत्कृष्टतम सत्य, शौच, ज्ञान, दर्शन और चारित्र के धारक/पालक थे। घोर परीषहों को सहन करने वाले थे। घार तपस्वी/साधक थे । उत्कृष्ट ब्रह्मचर्य के पालक थे। शरीर-संस्कार के त्यागी थे । विपुल तेजोलेश्या को अपने शरीर में समाविष्ट करके रखने वाले थे। चौदह पूर्वो के ज्ञाता थे और चार ज्ञान के धारक थे।" प्रश्नोत्तर गौतम जब “ऊर्ध्वजानु अधः शिरः" आसन से ध्यानकोष्ठक/ध्यान में बैठ जाते थे अर्थात् बहिर्मुखो द्वारों/विचारों को बन्द कर अन्तर् में चिन्तनशोल हो जाते थे, उस समय धर्मध्यान और शुक्लध्यान की स्थिति में उनके मानस में जो भी प्रश्न उत्पन्न होते थे, जो कुछ भी जिज्ञासाएँ उभरती थीं, कौतूहल जागृत होता था, तो वे अपने स्थान से उठकर भगवान् के निकट जाते, वन्दन-नमस्कार करते और विनयावनत होकर शान्त स्वर में पूछते -भगवन् ! इनका रहस्य क्या Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003811
Book TitleGautam Ras Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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