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गौतम रास : परिशीलन
साथ यज्ञ सम्पन्न कराने हेतु अपापा आ गये थे। विशेषावश्यक भाष्य के अनुसार इन यज्ञाचार्यों की शिष्य संख्या निम्न थी:
इन्द्रभूति ५००, अग्निभूति ५००, वायुभूति ५००, व्यक्त ५००, सुधर्म ५००, मंडित ३५०, मौर्यपुत्र ३५०, अकम्पित ३००, अचलभ्राता ३००, मेतार्य ३००, प्रभास ३०० । इस प्रकार इन ग्यारह प्राचार्यों की कुल शिष्य संख्या ४४०० थी।
इन्द्रभूति के अप्रतिम वैदुष्य और प्रकृष्टतम यशोकोति के कारण यज्ञानुष्ठान में मुख्य आचार्य के पद पर इनको अभिषिक्त किया गया था तथा इनके तत्त्वावधान में ही यज्ञ का अनुष्ठान प्रारम्भ हुआ था।
यज्ञ के विशालतम प्रायोजन तथा इन्द्रभूति आदि उक्त दुर्घर्ष आचार्यों की कीत्ति से आकर्षित होकर दूर-दूर प्रदेशों से अपार जनसमूह उस यज्ञ समारोह को देखने के लिए उमड़ पड़ा था।
उस समय अपापा नगरो का वह यज्ञ-स्थल एक साथ सहस्रों कण्ठों से उच्चरित वेद मन्त्रों की सुमधुर ध्वनि से गगन मंडल को गुंजायमान करने वाला हो गया था। यज्ञ वेदियों में हजारों स्र वाओं से दी जाने वाली घृतादि की आहुतियों की सुगन्ध एवं धूम्र के घटाटोप से धरा, नभ और समस्त वातावरण एक साथ ही गुंजरित, सुगन्धित एवं मेघाच्छन्न सा हो उठा था। विशालतम यज्ञ-मण्डप में उपस्थित जन-समूह अानन्द-विभोर होकर एक अनिर्वचनीय मस्ती/आह्लाद में झूमने लगा था।
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