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________________ गणधर गौतम : परिशीलन महावीर का समवसरण इधर क्षत्रिय कुण्ड के राजकुमार वर्धमान जिनका ईस्वी पूर्व ५६६ में जन्म हुआ था और जिन्होंने आत्म-साधना विचार से प्रेरित हाकर, राज्य वैभव और गृहवास का पूर्णतः परित्याग कर ईस्वी पूर्व ५६६ में प्रव्रज्या ग्रहण करली थो । दीक्षानन्तर अनेक प्रदेशों में विचरण करते हुए, अकथनीय उपसर्गों/ परोषहों का समभाव से सहन करते हुए, उत्कट तपश्चर्या द्वारा शरार का प्रातापना देते हुए, पूर्वकृत कर्म-परम्परा को निर्जर/ क्षय करते हुए, साढ़ बारह वर्ष के दीर्घकालीन समय तक जो सयम-साधना में रत रहे और अन्त में ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणोय, मोहनाय, वेदनाय इन चारों घाति कर्मों का नाश कर, केवलज्ञान एव केवलदशन प्राप्त कर ईस्वा पूर्व ५५७ में वैशाख शुक्ला १० को सवज्ञ बन गये थे। श्रमण वर्धमान/महावोर जम्भिका नगर के बाहर, ऋजुवालिका नदा के किनारे श्यामाक गाथापति के क्षत्र में शालवृक्ष के नाच, गादाहिका पासन से उत्कट रूप में बैठ हुए ध्यानावस्था में केवलज्ञाना बने थे। सर्वज्ञ बनते हो चतुर्विधनिकाय के देवों ने ज्ञान का महोत्सव किया और तत्क्षण हो वहाँ समवसरण की रचना की । समवसरण में विराजमान होकर प्रभु ने प्रथम देशना दी, किन्तु वह निष्फल हुई । इसीलिये यह “अच्छेरक" आश्चर्यकारक माना गया । तीर्थ-स्थापना का अभाव देखकर प्रभु ने वहाँ से रात्रि में ही विहार कर, वैशाख शुक्ला एकादशी को प्रातः समय में अपापा नगरो के महसेन नामक उद्यान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003811
Book TitleGautam Ras Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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