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________________ गणधर गौतम : परिशीलन उस अवस्था तक वे बाल ब्रह्मचारी ही रहे या गार्हस्थ्य जीवन में रहे ? कोई स्पष्ट उल्लेख प्राप्त नहीं होता । अतः यह मान सकते हैं कि इन्द्रभूति ने अपना ५० वर्ष का जीवन अध्ययन, अध्यापन, वाद-विवाद और कर्मकाण्ड में रहते हुए बालब्रह्मचारी के रूप में ही व्यतीत किया था। शरीर-सौष्ठव-भगवती सूत्र में इन्द्रभूति की शारीरिक रचना के प्रसंग में कहा गया है-इन्द्रभूति का देहमान ७ हाथ का था, अर्थात शरीर की ऊँचाई सात हाथ की थी । आकार समचतुरस्र संस्थान लक्षण (सम चौरस शरीराकृति) युक्त था । वज्र ऋषभनाराच-वज्र के समान सुढ़ संहनन था। इनके शरीर का रंग-रूप कसौटी पर रेखांकित स्वर्ण रेखा एवं कमल की केशर के समान पद्मवर्णी गौरवर्णी था। विशाल एवं उन्नत ललाट था और कमल-पुष्प के समान मनोहारी नयन थे । उक्त वर्णन से स्पष्ट है कि इनकी शरीर-कान्ति देदीप्यमान और नयनाभिराम थी। अन्तिम यज्ञ-उस समय अपापा नगरो में वैभव सम्पन्न एवं राज्य मान्य सोमिल नामक द्विजराज रहते थे। उन्होंने अपनी समृद्धि के अनुसार अपनी नगरी में ही विशाल यज्ञ करवाने का प्रायोजन किया था। सोमिल ने यज्ञ के अनुष्ठान हेतु विहार प्रदेशस्थ राजगृह, मिथिला आदि स्थानों के अनेक दिग्गज कर्मकाण्डी विद्वानों को आमन्त्रित किया था। इनमें ग्यारह उद्भट याज्ञिक प्रमुखों-इन्द्रभूति, अग्निभूति, वायुभूति, व्यक्त, सुधर्म, मण्डित, मौर्यपुत्र अकम्पित, अचल भ्राता, मेतार्य एवं प्रभास-को तो बड़े अाग्रह के साथ आमन्त्रित किया था। उक्त ग्यारह आचार्य भी अपने विशाल छात्र/शिष्य समुदाय के Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003811
Book TitleGautam Ras Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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