________________
गणधर गौतम : परिशीलन
"
१. अध्यापन - इन्होंने ५०० छात्रों / बटुकों को समग्र विद्याओं का अध्ययन कराते हुए सुयोग्यतम वेदवित् कर्मकाण्डी और वादी बनाये । ये ५०० छात्र शरीर छाया के समान सर्वदा इनके साथ ही रहते थे ।
२. शास्त्रार्थ - दुर्घर्ष विद्वान् होने के कारण इन्द्रभूति ने छात्र - समुदाय के साथ उत्तरी भारत में घूम-घूम कर, स्थानस्थान पर तत्कालीन विद्वानों के साथ शास्त्रार्थ किये और उन्हें पराजित कर अपनी दिग्विजय पताका फहराते रहे । किनकिन के साथ और किस-किस विषय पर शास्त्रार्थ किये ? उल्लेख प्राप्त नहीं है ।
I
३. यज्ञाचार्य -- इन्द्रभूति प्रमुखतः मीमांसक होने के कारण कर्मकाण्डो थे । स्वयं प्रतिदिन यज्ञ करते और विशालतम याग - यज्ञादि क्रियाओं के अनुष्ठान करवाते थे । यज्ञाचार्य के रूप में दसों दिशाओं में इनकी प्रसिद्धि थी । फलतः अनेक वैभवशाली गृहस्थ बड़े-बड़े यज्ञों का अनुष्ठान कराने के लिए इन्हें अपने यहाँ ग्रामन्त्रित कर स्वयं को भाग्यशाली समझते थे । इन्द्रभूति को कोति से आकृष्ट होकर अपार जन-समूह दूरस्थ प्रदेशों से इनकी यज्ञ आहूति में पहुँच कर अपने को धन्य
समझता था ।
स्पष्ट है कि इनका विशाल शिष्य समुदाय था । इनके अप्रतिम वैदुष्य के समक्ष बड़े-बड़े पण्डित व शास्त्र-धुरन्धर नतमस्तक हो जाते थे । प्रतिनिष्णात वेद-विद्या और उच्च यज्ञाचार्य के समक्ष उस समय इन्द्रभूति की कोटि का कोई दूसरा विद्वान् मगध देश में नहीं था ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org