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गौतम रास : परिशीलन
जीवन-चरित्र गौतमस्वामी का व्यक्तित्व और कृतित्व अनुपमेय है । सर्वांग रूप से इनका जीवन-चरित्र प्राप्त नहीं है, किन्तु इनके जीवन की छुट-पुट घटनाओं के उल्लेख आगम, निर्यक्ति, भाष्य, टीकाओं में बहुलता से प्राप्त होते हैं। यत्र-तत्र प्राप्त उल्लेखों/बिखरी हुई कड़ियों के आधार पर इनका जो जीवनचरित्र बनता है, वह इस प्रकार है ।
जन्मः-मगध देश के अन्तर्गत नालन्दा के अनति-दूर "गुव्वर" नाम का ग्राम था, जो समृद्धि से पूर्ण था। वहाँ विप्रवंशीय गौतम गोत्रीय वसुभूति नामक श्रेष्ठ विद्वान् निवास करते थे। उनकी अर्धांगिनी का नाम पृथ्वी था । पृथ्वी माता की रत्नकुक्षि से ही ईस्वी पूर्व ६०७ में ज्येष्ठा नक्षत्र में इनका जन्म हुआ था। इनका जन्म नाम इन्द्रभूति रखा गया था। इनके अनन्तर चार-चार वर्ष के अन्तराल में विप्र वसुभूति के दो पुत्र और हुए; जिनके नाम क्रमशः अग्निभूति और वायुभूति रखे गये थे।
__ अध्ययनः-यज्ञोपवीत सस्कार के पश्चात् इन्द्रभूति ने उद्भट शिक्षा-गुरु के सान्निध्य में रहकर ऋक्, यजु, साम एवं अथर्व-इन चारों वेदों; शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द एवं ज्योतिष इन छहों वेदांगों तथा मीमांसा, न्याय, धर्म-शास्त्र एवं पुराण-इन चार उपांगों का अर्थात् चतुर्दश विद्याओं का सम्यक् प्रकार से तलस्पर्शी ज्ञान प्राप्त किया था ।
आचार्य-चौदह विद्यानों के पारंगत विद्वान होने के पश्चात् इन्द्रभूति के तीन कार्य-क्षेत्र दृष्टि-पथ में आते हैं
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