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गौतम रास : परिशीलन
परिपूर्ण, समस्त लब्धियों, सिद्धियों, निधियों के धारक और प्रदाता, सत् विद्या/द्वादशांगी के निर्माता, प्रतिबोधनपटु, चिन्तामणिरत्न एवं कल्पवृक्ष के सदृश अभीष्ट फलदाता, गणाधीश और प्रातः स्मरणीय माना गया है । गुरु-भक्ति में तो इनका नाम उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत किया जाता है ।
न केवल जैन साहित्य में ही अपितु विश्व साहित्य में भी इस प्रकार का कोई उदाहरण प्राप्त नहीं है कि किसी गुरु ने अपने समग्र जीवन-काल में पद-पद/स्थान-स्थान पर अपने से अभिन्न शिष्य का सहस्राधिक बार नामोच्चारण कर, प्रश्नों के उत्तर या सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया हो। गणधर गौतम ही विश्व में उन अनन्यतम शिष्यों में से हैं कि जिनका चौवीसवें तीर्थंकर श्रमण भगवान् महावीर अपने श्रीमुख से प्रतिक्षण-प्रतिपल "गोयमा ! गौतम !” का उच्चारण उल्लेख करते रहे । समग्र जैनागम साहित्य इसका साक्षी है।
विश्व चेतना के धनी गुरु गौतम चिन्तन से, व्यवहार से, संघ नेतृत्व से पूर्णरूपेण अनेकान्त की जीवन्त मूर्ति हैं । इनकी ऋतम्भरा प्रज्ञा से, असीम स्नेह से, आत्मीयता परिपूर्ण अनुशासन से, विश्वजनीन कारुण्यवृत्ति से महावीर के संघोद्यान की कोई भी कली ऐसी नहीं है, जो अधखिली रह गई हो !
सन्त प्रवर मुनि रूपचन्द्र के शब्दों में कहा जाय तो
"प्रथम गणधर इन्द्रभूति गौतम ! चौदह पूर्वो के अतल श्रुतसागर के पारगामी गौतम ! भगवान महावीर के कैवल्य
1. २५००वां गणधर गौतम निर्वाण महोत्सव स्मारिका पृष्ठ ५ ।
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