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________________ गणधर गौतम खं तिखमं गुणकलियं सव्वलद्धिसम्पन्नं । वीरस्स पढमं सीसं गोयमसामि नम॑सामि || अब्धिर्लब्धि कदम्बकस्य तिलको निःशेषसूर्यावलेरापीडः प्रतिबोधने गुणवतामग्रेसरो वाग्मिनाम् । दृष्टान्तो गुरुभक्तिशालिमनसां मौलिस्तपः श्रीजुषां, सर्वाश्चर्यमयो महिष्ठसमयः श्री गौतमस्तान् मुदे || अंगुष्ठे चामृतं यस्य यश्च सर्वगुणोदधिः । भण्डारः सर्वलब्धीनां वन्दे तं गौतमप्रभुम् ॥ श्रीगीतमो गणधरः प्रकटप्रभावः, सल्लब्धि-सिद्धिनिधिरञ्चित वाक्प्रबन्धः | विघ्नान्धकारहरणे तरणिप्रकाश:, साहाय्यकृद् भवतु मे जिनवीर शिष्यः ॥ सर्वारिष्टप्रणाशाय सर्वाभीष्टार्थदायिने । सर्वलब्धि निधानाय गौतमस्वामिने नमः ॥ भारतीय समाज में विघ्नोच्छेदक एवं कल्याण-मंगलकारक के रूप में जो सर्वमान्य स्थान गणपति / गणेश का है उससे भी अधिक एवं विशिष्टतम स्थान जैन समाज तथा जैन साहित्य में गणधर गौतम स्वामी का है । जैन परम्परा में तो इन्हें विघ्नहारी मंगलकारी के अतिरिक्त क्षान्त्यादि सर्वगुण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003811
Book TitleGautam Ras Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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