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गौतम रास : परिशीलन
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उसो रात्रि में वज्र स्वामी का जीव जो उस समय तिर्यग् जम्भक देव था, वह ध्यानावस्थित गौतम स्वामी के निकट पाया और स्वामी ने पुण्डरीक-कण्डरीक को कथा के माध्यम से उसे प्रतिबोधित किया। प्रातःकाल होने पर वापस लौटते हुए गौतम स्वामी ने तपस्यारत समस्त पन्द्रह सौ तापसों को प्रतिबोध दिया। सभी तपस्वियों ने सहर्ष उनका शिष्यत्व अंगोकार कर लिया। जिस प्रकार हाथी अपने झुण्ड के साथ चलता है, वैसे ही यूथाधिपति के समान गौतम स्वामी पन्द्रह सौ शिष्यों के परिवार के साथ समवसरण की ओर चले ॥२८॥
खीर खाण्ड घृत प्राणि, अमिय वूठि अंगूठ ठवई, गोयम एकण पात्र, करावइ पारणउ सवई । पंच सयां सुभ भाव, उज्जल भरियउ खीर मिसइ, साचा गुरु संयोग, कवल ते केवल रूप हुआ ॥२६॥
ये समस्त तपस्वी तापस निरन्तर एक, दो, तोन उपवास की तपस्या में रत थे। संयोग से जिस दिन उन्होंने शिष्यत्व अंगोकार किया, वह सभी के पारणक का दिन था। सभी को गौतम स्वामो जैसा सद्गुरु प्राप्त कर परमानन्द हुआ था। अतः गौतम स्वामी भी पारणक के दिवस मधुकरो/गोचरो में अपने पात्र में दूध, खाण्ड, घृत मिश्रित खीर/परमान्न लेकर आये । सभी तपस्वियों को पंगत में बिठाया। उस पात्र में स्वयं का अमृतस्रावि अंगुष्ठ रख कर सभी को पारणा करवाया। एक ही छोटे से पात्र में रही खीर द्वारा सभी को सन्तुष्टि हुई। उनके इस अतिशय/लब्धि का एवं सद्गुरु की महत्ता का शुभ चिन्तन करते हुए खीर खाते-खाते पाँच सौ
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