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गौतम रास : परिशीलन
तथापि हम लोग तपस्या के बल पर क्रमशः एक, दो, तीन सीढ़ियों तक ही चढ़ पाये, आगे नहीं बढ़ पाये । तापसगण सोचते ही रहे और उनके देखते ही देखते गौतम स्वामी सूर्य की किरणों के समान आत्मिक बलवीर्य का पालम्बन लेकर तत्क्षण ही आठों सीढ़ियां पार कर तीर्थ पर पहुँच गये ॥२६॥
कंचन मणि निष्फन्न, दण्ड-कलस ध्वज वड सहिय, पेखवि परमाणंद, जिणहर भरहेसर महिय । निय निय काय प्रमाण, चिहु दिसि संठिय जिणह बिम्ब, पणमवि मन उल्लास, गोयम गणहर तिहां वसिय ॥२७॥
अष्टापद पर्वत पर चक्रवर्ती भरत महाराज द्वारा महित/ पूजित जिन-मन्दिर मणिरत्नों से निर्मित था, दण्ड-कलश युक्त था, विशाल ध्वजा से शोभायमान था। मन्दिर के भीतर प्रत्येक तीर्थंकर की देहमान के अनुसार २४ जिनेन्द्रों की रत्न मूर्तियाँ चारों दिशाओं में ४,८,१०,२ विराजमान थीं। मन्दिरस्थ जिन मूर्तियों के दर्शन कर गौतम स्वामी का हृदय उल्लास से सराबोर हो गया, हृदय परम आनन्द से खिल उठा । भक्ति-पूर्वक स्तवना का । सांयकाल हो जाने के कारण मन्दिर के बाहर शिला पर ही ध्यानावस्था में रात्रि व्यतीत की ।।२७॥
वयरसामि नउ जीव, तिर्यग् जृम्भक देव तिहां, प्रतिबोध्या पुंडरिक, कंडरीक अध्ययन भणो। वलता गोयम सामि, सवि तापस प्रतिबोध करइ, लेइ प्रापणि साथ, चालई जिम जूथाधिपति ॥२८॥
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