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________________ गौतम रास : परिशीलन ११९ गणधर गौतम की जिज्ञासा थी कि - "मैं चरम शरीरी हैं या नहीं" अर्थात् इसी मानव शरीर से, इसी भव में मैं निर्वाण पद प्राप्त करूगा या नहीं ? महावीर ने उत्तर दिया-आत्मलब्धि-स्ववीर्यबल से अष्टापद पर्वत पर जाकर भरत चक्रवर्ती निर्मित चैत्य में विराजमान चौवीस तीर्थंकरों की वन्दना जो मुनि करता है, वह चरम शरीरी है। प्रभु को उक्त देशना सुनकर गौतम स्वामो अष्टापद तीर्थ को यात्रा करने के लिये चल पड़े। उस समय अष्टापद पर्वत पर आरोहण करने हेतु पहलो, दूसरो और तीसरो सीढ़ियों पर क्रमशः पाँच सौ-पाँच सौ कुल पन्द्रह सौ तपस्वोगण अपनी-अपनी तपस्या के बल पर चढे हए थे। उन्होंने गौतम स्वामी को आते देखा । ॥२५॥ तप सोसिय निय अंग, अम्हां सगति न उपजइ ए, किम चढसइ दिढकाय, गज जिम दोसइ गाजतउ ए। गिरुपउ इणे अभिमान, तापस जो मन चितवइ ए, तउ मुनि चढियउ वेग, प्रालंबवि दिनकर किरण ए ॥२६॥ गौतम स्वामी को अष्टापद पर्वत पर चढ़ने के लिए प्रयत्नशोल देखकर वे तापस मन में विचार करने लगे-यह अत्यन्त बलवान मानव जो मदमस्त हस्ति के समान झमता हुआ आ रहा है, यह पर्वत पर कैसे चढ़ सकेगा? असम्भव है। लगता है कि उसको अपने बल पर सीमा से अधिक अभिमान है । अरे ! हमने तो उग्रतर तपस्या करते हुए स्वयं के शरारा का शाषित कर, अस्थि-पजर मात्र बना रखा है, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003811
Book TitleGautam Ras Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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