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________________ १२२ गौतम रास : परिशीलन तपस्वियों को केवल ज्ञान प्राप्त हो गया था । सच है कि वास्तविक सद्गुरु का संयोग / सान्निध्य मिलने पर कवल / ग्रास भी केवलज्ञान के रूप में परिणत हो जाता है ||२६|| पंच सयां जिण नाह, समवसरण प्राकार त्रयइ, पेखवि केवल नारण, उप्पन्नो उज्जोय करइ । जाणइ जणवि पीयुष, गाजंतउ घन मेघ जिम, जिन-वाणी निसुणेवि नाणी हुआ पंच सयां ||३०|| पाँच सौ तपस्वियों ने जिनेन्द्र भगवान् के तीन परकोटे वाले अद्भुत एवं अनिर्वचनीय समवसरण को देखकर, शुभभाव पूर्वक विचार सरणि में चढ़ते हुए जगदुद्योतकारी / लोकालोक प्रकाशक केवलज्ञान प्राप्त किया । और, पाँच सौ ने वर्षाकालीन सघन मेघों की गर्जना के समान जिनेन्द्र महावीर विभु की दिव्य वाणी को सुनकर, विशुद्ध चिन्तन पूर्वक गुणस्थानों पर आरोहण करते हुए केवलज्ञान प्राप्त किया ||३०|| ( इरिण अनुक्रमइ ) इणि अनुक्रमइ नाण सम्पन्न, पनरह सय परिवरिय, हरिय दुरिय जिणनाह वंदइ, जाणवि जगगुरु वयण, तिहं नाण अप्पाण निंदइ । चरम जिणेसर इम भणइ, गोयम म करिस खेउ । छेहि जाइ आणि सही, होस्यां तुल्ला बेउ ||३१|| केवलज्ञान सम्पन्न पन्द्रह सौ केवलियों से परिवृत होकर, गौतम स्वामी समवसरण में पहुँच कर हितकारी प्रभु को Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003811
Book TitleGautam Ras Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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