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गौतम रास : परिशीलन
तपस्वियों को केवल ज्ञान प्राप्त हो गया था । सच है कि वास्तविक सद्गुरु का संयोग / सान्निध्य मिलने पर कवल / ग्रास भी केवलज्ञान के रूप में परिणत हो जाता है ||२६||
पंच सयां जिण नाह, समवसरण प्राकार त्रयइ, पेखवि केवल नारण, उप्पन्नो उज्जोय करइ । जाणइ जणवि पीयुष, गाजंतउ घन मेघ जिम, जिन-वाणी निसुणेवि नाणी हुआ पंच सयां ||३०||
पाँच सौ तपस्वियों ने जिनेन्द्र भगवान् के तीन परकोटे वाले अद्भुत एवं अनिर्वचनीय समवसरण को देखकर, शुभभाव पूर्वक विचार सरणि में चढ़ते हुए जगदुद्योतकारी / लोकालोक प्रकाशक केवलज्ञान प्राप्त किया । और, पाँच सौ ने वर्षाकालीन सघन मेघों की गर्जना के समान जिनेन्द्र महावीर विभु की दिव्य वाणी को सुनकर, विशुद्ध चिन्तन पूर्वक गुणस्थानों पर आरोहण करते हुए केवलज्ञान प्राप्त किया ||३०||
( इरिण अनुक्रमइ ) इणि अनुक्रमइ नाण सम्पन्न, पनरह सय परिवरिय, हरिय दुरिय जिणनाह वंदइ, जाणवि जगगुरु वयण, तिहं नाण अप्पाण निंदइ ।
चरम जिणेसर इम भणइ, गोयम म करिस खेउ । छेहि जाइ आणि सही, होस्यां तुल्ला बेउ ||३१||
केवलज्ञान सम्पन्न पन्द्रह सौ केवलियों से परिवृत होकर, गौतम स्वामी समवसरण में पहुँच कर हितकारी प्रभु को
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