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गौतम रास : परिशीलन
उस समय समवसरण के मध्य सिंहासन पर विराजमान प्रभु वर्धमान स्वामी योजन पर्यन्त प्रसृत होने वाली वाणी से उपशम रस से सराबोर अमृतमयी मधुर देशना देने लगे । जब लोगों ने यह जाना कि वर्धमान स्वामी पधारे हैं और देशना दे रहे हैं तब देववृन्द, मनुष्यवृन्द, किन्नरगण श्रौर भूपतिगण प्रभु के दर्शन करने और देशना सुनने के लिये ग्राने लगे, उमड़ पड़े ।।१२।।
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कांति समूहइ झलहलकंता, गयरण विमार्णाहं रणरणकंता । पेखवि इन्दभूइ मन चितइ, सुर श्रावइ श्रम यज्ञ हुवंतइ ॥१३॥ नभोमण्डल में कान्ति समूह से देदीप्यमान / जाज्वल्यमान एवं घण्टियों के रण - रणक ध्वनि से गुंजार करते हुए विमानों के श्रागमन को देखकर इन्द्रभूति स्वयं के मन में ऊहापोह करने लगे कि 'यज्ञ के प्रभाव से ही प्रेरित होकर ये देव - विमान हमारे यज्ञवाटक - यज्ञशाला में आ रहे हैं' ।। १३ ।।
तीर तरण्डक जिम ते वहता, समवसरण पहुता गहगहता । तउ श्रभिमानइ गोयम जंपइ, इणि श्रवसरि कोपे तणु कंपइ ॥ १४ ॥
किन्तु, जिस प्रकार धनुष से छोड़ा हुआ तीर सीधा निशाने की ओर जाता है उसी प्रकार ये देवविमान यज्ञशाला को लाँघकर, देवगण गद्गदुद्भावों से भक्ति / उल्लास पूर्वक समवसरण में पहुँच गये । इस दृश्य को देखकर क्रोधाधिक्य
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