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गौतम रास : परिशीलन
(जम्बूद्दीव) जम्बूद्दीव भरहवासम्मि,
खोणीतलइ मंडण, मगह देस सेणिय नरेसर, वर गुन्वर गाम तिहं
विप्प वसइ वसुभूइ सुन्दर । तसु पुहवो भज्जा सयल, गुणगण रूवनिहाण । ताण पुत्त विज्जानिलउ, गोयम अतिहि सुजाण ॥७॥
पूर्वोक्त छः पद्यों के निष्कर्षों का वस्तु नाम छन्द में प्रतिपादन करते हुए कवि कहता है :
जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में पृथ्वीतल का मण्डनभूत मगध देश था । वहाँ का नृपति श्रेणिक था। उसी प्रदेश में श्रेष्ठ गव्वर नामक ग्राम था। उस ग्राम में वसूभूति नामक श्रेष्ठ विप्र रहता था। उसकी पत्नी का नाम पृथ्वी था। उन्हीं का पुत्र गोतम था जो समस्त गुणों का भण्डार, रूप का निधान विद्या का मन्दिर और अत्यन्त सुज्ञ था ।
यह चारुसेना नामक रड्डा-वस्तु छन्द है । इस मात्रिक छन्द में नौ चरण होते हैं। प्रथम के पाँच चरणों में क्रमशः १५, ११, १५, ११, १५ मात्राएँ होती हैं और अन्त के चार चरण दोहा छन्द के होते हैं ॥७॥
सर्वज्ञ बनने के पश्चात् भगवान् महावीर तोर्थ अर्थात् संघ की स्थापना हेतु पावापुरी पधारे, उस समय उनके अतिशयों का वर्णन करते हुए पद्यांक ८ से १५ तक में कवि कहता है :
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