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गौतम रास : साहित्यिक पर्यालोचन
इनके अतिरिक्त उत्प्रेक्षा (४२), व्यतिरेक (४) अति. शयोक्ति (४) आदि अलंकार भी यत्र-तत्र प्रयुक्त हुए हैं जिनसे वर्ण्य-विषय काव्यात्मक बनकर अधिक रमणीय बन गया है।
छन्द प्रयोग-प्रारम्भ में रासो लक्षण के अन्तर्गत लिखा जा चुका है कि रासो काव्य की मुख्य पहचान उसमें प्रयुक्त विविध छन्दों के कारण ही मानी गई है। प्रस्तुत "गोयम रास" में उसी परम्परा का सफल निर्वाह किया गया है। कविवर विनयप्रभ ने अपभ्रंश में प्रयुक्त अनेक छन्दों में से कतिपय का चयन कर उन्हें अपने रास में निबद्ध किया है तथा अपने पिंगल-नैपुण्य का परिचय दिया है।
प्रारम्भ में छः पद्यों में रोला, ७, १६, २२, ३१ में चारु सेना नामक रड्डा-वस्तु छन्द, ८ से १५ तक चौपाई, १७ से २१ तक उल्लाला, २३ से ३० तक के पद्यों में सोरठा से मिलते जुलते किसी देश्य छन्द का प्रयोग हुआ है। इसी प्रकार ३२ से ३७ तथा ३८ से ४७ पर्यन्त पद्यों में प्रयुक्त छन्द भी देश्य हैं जिनका नाम शोध का विषय है । कुल ४७ पद्यों के काव्य में इतने विविध छन्दों का प्रयोग इस तथ्य का द्योतक है कि कवि को रास काव्य की लक्षण-परम्परा का ज्ञान था जिसका उसने सफल निर्वाह प्रस्तुत काव्य में कर दिखाया है ।
रस-परिपाक -- यद्यपि धार्मिक काव्य में रस-निष्यन्द के लिए स्थान कम ही होता है, तथापि काव्य में ऐसे कुछ स्थल भी हैं जहाँ पाठक पर कवि रस के सुरम्य छींटे डालता चलता है। इन्द्रभूति के रूप-सौन्दर्य का वर्णन करते हुए ३ से ५ पद्यों में शृंगार रस का स्पर्श है, तो समवसरण के समय महावीर प्रभु के दिव्य प्रभाव का वर्णन करते हुए कवि अद्भुत रस का चित्रण करता है (पद्य संख्या ८ से १६)। पद्य ३३
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