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गौतम रास : परिशीलन
(२) तउ चढियउ घण माण गजे, इन्दभूइ भूदेव तउ । ( ब्राह्मण इन्द्रभूति अत्यन्त अभिमान रूपी गज पर सवार हो गये ।)
उपमा - उपमान और उपमेय के सादृश्य - विधान पर आधारित उपमा अलंकार के सरल किन्तु सार्थक प्रयोग इस "रास" में कई पंक्तियों में उपलब्ध होते हैं । पावापुरी में महावीर प्रभु समवसरण में जब सिंहासन पर विराजमान हुए तो क्रोध, मान, माया, मद आदि मनोविकार ऐसे भाग खड़े हुए, जैसे दिन में चोरः
क्रोध मान माया मद पूरा । जायइ नाठा जिम दिन चोरा ॥
महावीर स्वामी जग को अपने तेज से उसी प्रकार आलोकित कर रहे थे, जैसे दिनकर सूर्य अपना प्रकाश फैलाता है
जिणवर जगि उज्जोयकर । तेजहि कर दिनकार ॥
गौतम स्वामी शिष्यों के साथ इस प्रकार चल रहे थे जैसे कोई गजराज अपने गज-यूथ के साथ चलता हैलेइ आणि साथ, चालई जिम यूथाधिपति । महावीर प्रभु के वचनों से गौतम स्वामी का मुख पूर्ण चन्द्रमा के समान खिल उठा
पूनम चन्द जिम उल्लसिय ।
गौतम स्वामी जैन - परम्परा में किस प्रकार प्रधान हैं, इसका वर्णन कवि ने मालोपमा अलंकार से किया है जिसकी लड़ी ३८वें पद्य से ४१ वें पद्य तक चलती है ।
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