________________
१००
गौतम रास : परिशीलन
से ३६ तक गौतम स्वामी के विचार मन्थन में शान्त रस का परिपाक दृष्टिगोचर होता है जो वस्तुत: काव्य का प्रमुख रस है।
मार्मिक प्रसंग-इस लघुकाय काव्य में भी नायक इन्द्रभूति के गर्वोद्गार, महावीर प्रभु के वचनों द्वारा गौतम के के संशय का निराकरण, गौतम की जिज्ञासा तथा महावीर प्रभु के निर्वाण के समय गौतम का विलाप एवं उपालम्भ आदि ऐसे प्रसंग हैं जिनका कवि ने अत्यन्त हृदयस्पर्शी एवं मार्मिक चित्रण किया है।
भाषा-रास काव्यों का मुख्य लक्ष्य अपने प्रमुख प्रतिपाद्य को सरल भाषा में निबद्ध करके जन-जन तक पहुँचाना होता था । इस लक्ष्य की पूर्ति "गोयम रास" में अक्षरशः हुई है । अपभ्रंश से प्रभावित प्राचीन मरु-गुर्जर भाषा का नितान्त सरल काव्यमय रूप इस काव्य में आद्योपान्त उपलब्ध होता है । भाषा में कहीं जटिलता नहीं है। यही कारण है कि जैन परम्परा में केवल अपने कथ्य के कारण ही नहीं, अपितु अपनी सुबोध कथन-शैली एवं सरल भाषा के कारण यह काव्य पर्याप्त लोकप्रिय हुआ है।
उपर्युक्त पर्यालोचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि उपाध्याय विनयप्रभ काव्य प्रतिभा के धनी थे । उन्होंने गौतम स्वामी की गुण-गाथा के लिए तत्कालीन अपभ्रंश भाषा की लोकप्रिय जणमण-अहिराम रास परम्परा को चुना और विविध छन्दों और सरस अलंकारों के प्रयोग से अपनी रचना को विभूषित करके साहित्य जगत् को एक अनुपम काव्य-रत्न प्रदान किया जो आज भी जैन परम्परा का कण्ठहार बना हुआ है।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org