SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८८ गौतम रास : परिशीलन तिहुअण (त्रिभुवन), नाण (ज्ञान), वालियु, हेजइ, कनासुं, कीधलं, केडइ, जेम, इम, कनइं, इग्यार (एकादश), जंपइ (जल्पति), रणरणकन्ता, झलहलकन्ता, पइट्ठा, जुत्तउ, केवलनाणी आदि । ___टकसाली अपभ्रंश के कुछ शब्द इस प्रकार हैं-पुहुमि (पृथ्वी), ठव्यउ (स्थापित), पडिबोह (प्रतिबोध), पेख वि, वासम्मि, पउमेण, जिणहर, गणहर (गणधर), निय (निज), अम्हां, हुप्रउ (भूतः), रूव (रूप), चमक्किय (चमत्कृतः), कवणसु, उज्जायकर (उद्योतकर), इन्दभूई (इन्द्रभूति), चउविह (चतुर्विध) आदि । ___ इन शब्द-रूपों को देखकर यह कहा जा सकता है कि गौतमरास की भाषा मरुभूम की पश्चिमी राजस्थानी और गुर्जर भूमि की मिली जुली भाषा है । साहित्यिक भाषा का टकसाली रूप इसमें उतना नहीं है जितना बोलचाल की सर्वसाधारण की भाषा का रूप विद्यमान है। गौतमरास में अनेक-अनेक छन्दों का प्रयोग मिलता है। इससे पता चलता है कि रचनाकार का भाषा के ऊपर पूरा-पूरा अधिकार है । वाक्य रचना बड़ी सरल है । बोधगम्य है। छोटे-छोटे वाक्यों में गम्भीर बात को कहने की क्षमता इस रचना में अच्छी तरह से देखी जा सकती है ।। महोपाध्याय विनयप्रभ के वैदुष्य पर एवं गौतमरास के वैशिष्ट्य पर मेरे सन्मित्र डॉ० हरिराम आचार्य, प्रोफेसर संस्कृत विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर ने विस्तार से प्रकाश डाला ही है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003811
Book TitleGautam Ras Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy