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________________ गोयम गुरु रासउ : एक साहित्यिक पर्यालोचन 0 डॉ० हरिराम आचार्य रासो-परम्परा का प्रादुर्भाव कब से हुपा-यह निश्चित रूप से कहना कठिन है । हिन्दी साहित्य के प्रारम्भिक काल में ही हमें दो सुप्रसिद्ध रासो ग्रन्थ मिलते हैं-चन्द बरदाई कृत 'पृथ्वीराज रासो' और नरपति नाल्ह कृत "बीसलदेव रासो'। किन्तु इन दोनों रचनाओं में कथानक, छंद, रस एवं प्रबन्धात्मकता की दृष्टि से इतना अन्तर है कि इनके आधार पर रासो प्रबन्ध का कोई लक्षण निश्चित नहीं किया जा सकता। सौभाग्य से यह रासो परम्परा हिन्दी से भी पूर्व अपभ्रंश में और हिन्दी के समानान्तर गुजराती साहित्य में भी उपलब्ध होती है। अपभ्रंश के "मुजरास" का उल्लेख 'सिद्ध हैम व्याकरण' (हेमचन्द्र ११९७ वि०) और 'प्रबन्धचितामणि' (मेरुतुग १३६१ वि०) में हुमा है । दूसरा ग्रन्थ है-'सन्देशरासक' नामक प्रबन्ध जिसमें २२३ छन्दों में प्रवास जनित विरह का वर्णन किया गया है। एक अन्य रासो ग्रन्थ जिनदत्तसूरि विरचित "उपदेश रसायन रास" भी प्राप्त हुआ है। यह धार्मिक परम्परा का रचना है । इसमें कोई कथा-प्रबन्ध नहीं है। केवल कूल ८० चतुष्पदियाँ हैं। छंद भी एक ही है। विषय की दृष्टि से इसमें मात्र जैन धर्म का प्रतिपादन किया गया है । इस शांत रस प्रधान ग्रन्थ की रचना सं० १२१० वि० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003811
Book TitleGautam Ras Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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