SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गौतम रास : परिशीलन ष्ठान (महाराष्ट्र), दर्भकावती, खोहरि सामणी (मेदपाट), करहेटक, श्रीपुर (अंतरीक्ष-महाराष्ट्र), साजौदपुर, दाहडाल (मालव), नंदरबार, खड़ी (अरडकमल पार्श्व), सिंहद्वीप, शालिकावाडा कांटावसति, फुरगापुर (कर्णाटक) रविवाटक । इससे तत्कालीन जैन मन्दिरों और तीर्थों के विकास व ह्रास की अच्छी झांकी मिल जाती है । स्थिति-शोध के लिये इन दोनों-तीर्थमाला स्तवन व तीर्थयात्रा स्तव का अध्ययनशोध करना आवश्यक भी है । क्रमांक २ से १२ तक की रचनायें सं० १४३० की लिखित बड़ा ज्ञान भण्डार, बोकानेर एवं विजयधर्म लक्ष्मी ज्ञान मन्दिर आगरा की हस्तलिखित प्रतियों में प्राप्त हैं। जिस प्रकार याकिनीमहत्तरासूनु आचार्य हरिभद्रसूरि ने अपनी कृतियों में स्वयं के लिये "भवविरह" का प्रयोग किया है, उसी प्रकार विनयप्रभ ने भी अपनी रचनाओं में अपना उपनाम "बोधिबीज" का प्रयोग किया है। शिष्य परम्परा-विनयप्रभ के प्रमुख शिष्य विजयतिलक और प्रमुख प्रशिष्य क्षेमकीर्ति हुए । क्षमकीति से ही खरतरगच्छ को परम्परा में एक उपशाखा प्रसिद्ध हुई जो क्षेमकीति शाखा या खेमधाड़ शाखा के नाम से विख्यात हुई । इस परम्परा में तपोरत्न, महोपाध्याय जयसोम, गुणविनयापाध्याय, मतिकोति, श्रोसारोपाध्याय, सहजकोति, विनयमेरु, लक्ष्मीवल्लभ, सुप्रसिद्ध राजस्थानी भाषा के महाकवि उपाध्याय जिनहर्ष, रामविजयोपाध्याय, शिवचन्द्रोपाध्याय, महोपाध्याय अमरसिन्धुर, रामऋद्धिसार (रामलालजो) आदि शताधिक उद्भट्ट Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003811
Book TitleGautam Ras Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy