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कथाओं में अहिंसा दृष्टि/65 उत्पन्न करुणा इस कथा में साकार हो उठी है। दो राजाओं के व्यक्तिगत निपटारे के लिए लाखो व्यक्तियो के भरण के आंकड़ों से नहीं, अपितु व्यक्तिगत भावनाओ और शक्ति परीक्षण से भी उनकी हार-जीत स्पष्ट हो सकती है। इस दृष्टि से दृष्टि-युद्ध, मल्ल-युद्ध और वाक-युद्ध आदि का प्रस्ताव इस कथा में अहिंसा का प्रतीकात्मक घोषणा-पत्र है।10
नायाधम्मकहा की दो कथायें अहिंसा के सम्बन्ध में बहुत महत्त्वपूर्ण एवं बोधपूर्ण हैं। मेधकुमार के पूर्वभव के जीवन के वर्णन-प्रसंग में मेरुप्रभ हाथी की कथा वर्णित है। यह हाथी आग से घिरे दुर जगल में एकत्र छोटे-बड़े प्राणियों के बीच में खड़ा है। हर प्राणी सुरक्षित स्थान खोज रहा है। इस मेरुप्रभ हाथी ने जैसे ही खुजली के लिए अपना एक पैर उठाया कि उसके नीचे एक खरगोश का बच्चा खाली स्थान देखकर वहाँ आकर बैठ गया। हाथी खुजली मिटाकर अपना पर नीचे रखना चाहता है किन्तु जब उसे पता चला कि एक छोटा प्राणी उसके पैर के संरक्षण में आ गया है, तो उसकी रक्षा के लिए मेरुप्रभ हाथी अपना पैर उठाये ही रखता है। और अन्ततः नीन दिन-रात वैसे ही खड़े रहने पर वह स्वयं मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। किन्तु वह उस छोटे-से प्राणी खरगोश तक धूप और आग को गर्मी नहीं पहुँचने देता।" अहिंसा का इससे बड़ा उदाहरण और क्या होगा ?
इसी ज्ञाताधर्मकथा में धर्मरुचि मुनि की प्राणियों के प्रति अनुकम्पा का उत्कृष्ट उदाहरण वर्णित है। यह कथा हिंसा और अहिंसा के दोनों पक्षों को उजागर करती है। नागश्री जैसी स्वार्थी गृहस्थिन ने विषाक्त भोजन को केवल इसलिए साधु के पात्र में डाल दिया कि उसकी निंदा न हो कि उसके द्वारा बनाया गया भोजन शाक कडुआ है. विषाक्त है। किन्तु दूसरी ओर धर्मरुचि को जब यह पता लगा कि उसे भिक्षा में प्राप्त शाक कडुआ और विषाक्त है, तो गुरु-आज्ञा से वह उसे निर्जन स्थान पर फेंकने को उद्यत हुए। किन्तु यही उनकी अनुकम्पा सामने आ गई और उन्होंने यह देखा कि इस एक बून्द शाक के लिए हजारों चीटियाँ यहाँ एकत्र हो गई हैं। यदि पूरा शाक यहाँ डाल दिया गया तो हजारों, लाखो प्राणियों का अनायास वध हो जायगा। अत: वह करुणाशील साधु उस शाक को स्वयं पी गया।12 करोड़ों प्राणियों के प्राण-बध से एक का प्राणान्त होना उन्हें अधिक श्रेयस्कर लगा। यह इस बात का ज्वलंत उदाहरण है कि जीवन की दृष्टि से सभी प्राणियों का मूल्य बराबर है। इसलिए प्राकृत-कथाओं का यह प्रमुख स्वर रहा है कि अहिंसा का यथासभव आधिक से अधिक पालन किया जाए और हिंसा के वातावरण को समाप्त किया जाया।
अहिंसक समाज-निर्माण के प्रयोग : प्राकृत-कथाओं में अहिंसा की प्रतिष्ठा के लिए कई प्रयोग किये गये हैं। मानव के जीवन में अहिंसा के महत्त्व की इतनी भावना थी कि व्यक्ति यह प्रयत्न करता था कि यथासंभव हिंसा का निषेध किया जाय। सूत्रकृतांगसूत्र में आर्दकुमार मुनि की कथा वर्णित है। उन्होंने हिंसा के मूल कारण मास-भक्षण का युक्ति-पूर्वक निषेध किया है। 3 आवश्यकचूर्णि में अरहमित्त श्रावक के पुत्र जिनदत्त की कथा है। वह एक बार भयंकर रोग से पीड़ित हो जाता है। वैद्य उसे औषधि के साथ मांस-भक्षण आवश्यक बताते हैं। किन्तु वह अपने स्वास्थ्य के लिए अन्य प्राणियों के वध से प्राप्त होनेवाले मांस का भक्षण करना स्वीकार नहीं करता है। वसुदेवहिण्डि की एक कथा में
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