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________________ 66/प्राकृत कथा-साहित्य परिशीलन चारुदत्त अपनी यात्रा के लिए बकरे को मारकर उसकी खाल लेना पसन्द नहीं करता. जबकि उसका मित्र उस दुर्गम प्रदेश में उसे आवश्यक बताता है। 4 आगम-भाष्य-साहित्य में कालक कसाई के पुत्र सुलुस की कथा प्रसिद्ध है। उसका पिता प्रतिदिन पाँच सौ भैसे मारता था। अतः पिता की मृत्यु हो जाने पर सुलुस को भी जब कुल की परस्परा का निर्वाह करने के लिए कहा गया कि वह परिवार के मुखिया का दायित्व किसी पशु पर तलवार का एक वार करके स्वीकार करे, तो सुलुस ने इस आकरण हिंसा का विरोध किया और कहा कि इस हिंसा के पाप का भागी केवल मुझको होना पड़ेगा। तब परिवारवालों ने कहा कि तुम पश को काटो, उसमें हम सब हिस्सेदार होंगे। सलस ने अन्हें शिक्षा देने के लिए तलवार उठाकर उसका वार अपने पैर पर ही कर लिया। यह देखकर सब आश्चर्य चकित रह गये। तब सुलुस ने कहा अब आप सब मेरे पैर की इस पीड़ा को थोड़ी-थोड़ी बाँट लें. ताकि मुझे कष्ट न हो। परिवारवाले निरुत्तर हो गए। क्योंकि किसी की पीड़ा को कौन बाँट सकता है ? सुलस ने उन्हें समझाया कि इसी प्रकार प्रत्येक प्राणी को मारने पर उसे पीडा होती है। अतः हिंसा कभी भी सुखदायी नहीं हो सकती।15 बलि में होनवाले पशुवध को रोकने के लिए भी जैन-कथा-साहित्य में अनेक प्रसंग आये हैं ! अजमेर के पास हर्षपुर नामक स्थान पर बकरे की बलि को रोकने के लिए राजा पुष्यमित्र के समय में आचार्य प्रियग्रन्थ ने श्रावकों की प्रेरणा से बकरे पर मन्त्र प्रयोग कर उसे बलि से बचाया तथा उसकी वाणी में अहिंसा के महत्व को प्रतिपादित कराया है। पशुओं को अभयदान देने की यह बड़ी मार्मिक कथा है। इसी तरह भाष्य-साहित्य में वर्णित मातंग यमपाश की कथा जीव-बध-निषेध की प्रसिद्ध कथा है। चांडाल कुल में जन्म लेने पर भी यमपाश एवं-दिनों में जीव-बध नहीं करता था। उसकी यह प्रतिज्ञा कई प्राणियों को जीवन प्रदान करती है और अन्ततः राजा को भी जीव-वध की निषेध-आज्ञा प्रसारित करनी पड़ती है। प्राणीवध की निषेधाज्ञा : प्राकृत-कथाओं में अहिंसा के प्रचार के लिए राजाओं द्वारा अपने राज्य में अभारि-पडह बजवाये जाने के भी उल्लेख मिलते हैं। अमारि-घोषणा हो जाने पर कोई भी व्यक्ति किसी प्राणी का वध नहीं कर सकता था। उन दिनों मांस आदि की दुकानें भी बन्द कर दी जाती थीं। उपासकदशांग में वर्णित महाशतक श्रावक की कथा से ज्ञात होता है कि राजगृह नगर में अमारि-घोषणा हो जाने से रेवती को मास मिलना बन्द हो गया था।18 एक कथा से ज्ञात होता है कि राजा सौदास ने अष्टान्हिक-पर्व पर आठ दिन तक अमारि की घोषणा करवायी थी।19 राजस्थान में मध्ययुग तक राजाओं द्वारा ऐसी अमारि-घोषणाएँ किये जाने के उल्लेख मिलते हैं।20 उपदेशमाला में कहा गया है कि सारे संसार में अमारि-घोषणा किये जाने का फल उस व्यक्ति को प्राप्त होता है, जो किसी एक दुःखी प्राणी को भी जिनवचन में प्रतिबोधित कर देता है। हिंसा के दुष्परिणाम : जैन-कथा-साहित्य ने प्राणी-वध को रोकने एवं दूसरे को न सताने की भावना को दृढ़ करने के लिए एक कार्य यह भी किया है कि हिंसक कार्यों में लिप्त व्यक्तियों को जन्म-जन्मान्तरों में Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003809
Book TitlePrakrit Katha Sahitya Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherSanghi Prakashan Jaipur
Publication Year1992
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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