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________________ 48 / प्राकृत कथा - साहित्य परिशीलन धर्मकथानकों का महत्त्व : धर्मकथानकों द्वारा उपदेश देना चाहिये । किन्तु धर्मकथा से किसी का अनादर न हो। अन्यथा जैसे 22. नन्द बल से चाणक्य उपासक को 23. बुद्ध की उत्पत्ति के कथानक से अथवा 24. भल्लिग्रह उपाख्यान से भागवत को 25. एवं पेठाल पुत्र सत्यकि और उमा की कथा से रौद्र (शिवभक्त ) को प्रदेष उत्पन्न हो सकता है। अतः मुमुक्षुओं के हित के लिए ही धर्म कथा को कहने में पुण्य है। 35 पेढालपुत्र सत्यकि की कथा जैन साहित्य में महेश्वर (महिस्सर) के कथानक के रूप में प्रसिद्ध है।36 यह भगवान् शिव की कथा का जैन रूपान्तरण है। 37 इंद्रियविषयों को जीतो : शब्द, रूप, रस, गन्ध एवं स्पर्श के वशीभूत होकर प्राणी दुख पाते हैं। 38 यथा 26. (क) पुष्पशाल एवं भद्रा (शब्द में) :- वसन्तपुर में प्रसिद्ध संगीतज्ञ पुष्पशाल रहता था। उसी नगर के सेठ की पत्नी भद्रा पुष्पशाल के संगीत के शब्द में इतनी आसक्त हुई कि वह अपने आपको भूल गयी और वह उपरी छत से गिर कर मर गयी। 39 आचार्य हरिभद्र ने अपनी आवश्यकवृत्ति में भी इस कथा का उल्लेख किया है। आख्यानमणिकोश में पुष्पचूल और भद्रा के नाम से यह कथा संकलित है। 27. (ख) अर्जुन तस्कर (रूप में) :- अर्जुन नामक चोर को सुन्दर रूप के प्रति आकर्षण के कारण अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा 40 अपवश्यकटीका एवं आख्यानमणिकोश में रूप के प्रति आकर्षण की कथाएं वर्णित हैं। किन्तु उनके कथनक आचारांग से निम्न हैं । 28. (ग) गन्धप्रिय कुमार (गन्ध में) :- गन्धप्रिय नाम का एक राजकुमार था उसे सुगन्ध बहुत प्रिय थी। एक बार जहरीले पुष्प को सूंघने से उनकी मृत्यु हो गयी 141 आख्यानमणिकोश में यह कथा नृपसुत गंधप्रिय के नाम से वर्णित है। 29. (घ) सौदास ( रस में ) :- सौदास नामक एक राजा था। उसे मांस बहुत प्रिय था । वह मनुष्य का मांस भी नहीं छोड़ता था । 42 आख्यानमणिकोश में "नराद" के नाम से कथा वर्णित है। लोगों ने ऐसे मांसभक्षी राजा को गद्दी से उतार कर जंगल में भेज दिया था । वहाँ एक मुनि ने उसे प्रतिबोधित किया। 30. (ड.) सत्यकि (स्पर्श में) :- सत्यकि का मूल नाम महिस्सर था । उसने महारोहिणी विद्या प्राप्त की थी, जो उसके माथे पर छेद करके उसमें प्रविष्ट हुई थी। इसी को उसका तीसरा नेत्र कहा गया। वह स्त्रियों का लोलुप था । अतः राजा प्रद्योत ने उसे उमा गणिका की सहायता से मार डाला था 43 31. (घ) सुकुमारिका की कामासक्ति :- आचारांगटीका में इस कथा का संकेत मात्र है | 44 ज्ञाताधर्म की सुकुमारिका की कथा से यह भिन्न है। आवश्यकचूर्णि में सुकुमारिका को जितशत्रु की पत्नी कहा गया है। यह वही कथा होनी चाहिये। आख्यानमणिकोश में यही कथा सुकुमारिका के नाम से वर्णित है। कामासक्त जितशुत्रु राजा-रानी को लोग जंगल में छोड़ देते f Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003809
Book TitlePrakrit Katha Sahitya Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherSanghi Prakashan Jaipur
Publication Year1992
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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