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________________ द्वितीय कथानक तरह-तरह के अर्धमागधी के आगम साहित्य में जो कथा - बीज, रूपक अथवा सूक्ष्म कथाएं प्राप्त है, उनका विश्लेषण एवं विस्तार आगम के व्याख्या साहित्य में हुआ है। जिस प्रकार रामायण और महाभारत परवर्ती संस्कृत साहित्य के लिए आधारभूत ग्रन्थ रहें हैं उसी प्रकार संस्कृत, प्राकृत आदि भाषाओं में लिखे गये जैन साहित्य ने आगम साहित्य से प्रेरणा प्राप्त की है । आगम साहित्य में उपलब्ध कथाओं के मूल रूप को यद्यपि श्रद्धेय 'कमल' मुनी जी ने धम्मकहाणुओगो में व्यवस्थत किया है। किन्तु फिर भी इसमें अभी कई रूपक, दृष्टान्त, लौकिक कथाओं आदि का संकलन करना रह गया है। वह सब एक साथ सम्भव भी नहीं है। किन्तु आगे ऐसा एक संकलन होना चाहिए। आगमों में जो कथाएँ उपलब्ध हैं, उनको पूरी तरह से यहाँ देना तथा उनके उत्स और विकास पर विस्तार से यहाँ विश्लेषण करना सम्भव नहीं है। यह एक स्वतन्त्र अध्ययन का विषय है। डा. जगदीशचन्द्र जैन ने प्राकृत कथाओं के उद्भव एवं विकास पर महत्वपूर्ण प्रकाश डाला है। उस अध्ययन में उन्होंने आगम की कथाओं पर भी कुछ विचार प्रकट किये हैं। डा. ए.एन. उपाध्ये ने भी अपनी प्रस्तावनाओं में इस सम्बन्ध में कुछ सामग्री दी है । 2 आगम ग्रन्थों के भारतीय एवं कुछ विदेशी सम्पादकों ने भी अपनी भूमिकाओं में कथाओं की कुछ तुलना की है। किन्तु जैन आगमों में प्राप्त सभी कथाओं का तुलनात्मक अध्ययन अभी तक नहीं हो पाया है। शोध कार्य के लिए यह उपयोगी और समृद्ध क्षेत्र है । प्राकृत आगमी की कुछ कथाओं की संक्षिप्त कथावस्तु देते हुए उनके सम्बन्ध में कुछ तुलनात्मक टिप्पणी प्रस्तुत करने से आगे के अध्ययन के लिए कुछ मार्ग निकल सकता है। कुलकर- परम्परा : भारतीय इतिहास की पौराणिक परम्परा में कुलकर- संस्था का वर्णन है। मानव सभ्यता के प्रारम्भिक चरण में जीवनवृत्ति का निर्देश एवं मनुष्यों को कुल की तरह इकट्ठे रहने का उपदेश देने वालों को कुलकर कहा गया है। 3 आगम ग्रन्थों में ऐसे 15 कुलकरों का उल्लेख है- इमे पण्णरस कुलगरा समुप्पज्जित्था - ( जंबु. व. 2, सु. 28)। कुछ ग्रन्थों में इनकी संख्या 14 है। 4 मरुदेव, नाभि, ऋषभदेव इन्हीं कुलकरों में से थे। इन कुलकरों ने समाज और राजनीति दोनों क्षेत्रों को व्यवस्थत किया था। इनकी हाकार, माकार और धिक्कार की नीति मों समाज के सभी नियम समाहित थे।5 आज के संविधान की कुन्जी कुलकरों की इस नीति में है। जैन परम्परा के कुलकरों और वैदिक परम्परा के मनुओं के कार्य प्रायः समान हैं। " समवायांग एवं स्थानांग - सूत्र में केवल कुलकरों के नामों का उल्लेख है। किन्तु जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में कुलकरों की नीतियों का भी संकेत है।' कुलकरों की इसी परम्परा में ऋषभदेव हुए हैं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003809
Book TitlePrakrit Katha Sahitya Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherSanghi Prakashan Jaipur
Publication Year1992
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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