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________________ 12/प्राकृत कथा-साहित्य परिशीलन ऋषभचरित: ऋषभदेव जैन परम्परा में प्रथम तीर्थंकर हुए हैं। इनके जीवन के सम्बन्ध में विशाल साहित्य लिखा गया है। किन्तु आगमों में ऋषभदेव का जीवन बहुत संक्षिप्त और सरल है। इनमें उनके पूर्व-जन्मों का उल्लेख नहीं है। स्थानांगसूत्र आदि में विभिन्न प्रसंगों में ऋषभ का उल्लेख मात्र है। किन्तु जम्बूदीपप्रज्ञप्ति-सूत्र में उनका विस्तृत विवरण है। उनके चरितबिन्दु इस प्रकार है:1.जन्ममहिमा, 2.देवों द्वारा अभिषेक, 3. राज्यकाल. 4. कलाओं का उपदेश, 5. प्रव्रज्या-ग्रहण, 6. तपश्चर्या, 7.साधु-स्वरूप, 8.संयमी जीवन की उपमाएं 9.केवलज्ञान, 10.तीर्थ-प्रवर्तन, 11.आध्यात्मिक परिवार (गण, गणधर आदि) 12.निर्वाण की महिमा। ऋषभदेव का कथानक जैन, बौद्ध एवं वैदिक- तीनों परम्पराओं में पर्याप्त प्रचलित रहा है। वैदिक परम्परा के शिव एवं जैन परम्परा के ऋषभ का व्यक्तित्व प्रायः एक-सा है। दोनों ही आदिदेव के रूप में सर्वमान्य हैं। इनके जीवन की घटनाओं में कई समानताएँ हैं। बहुत सम्भव है कि शिव और ऋषभ का स्वरूप किसी आदिम लोकदेवता के स्वरूप से विकसित हुआ हो। परम्परा-भेद से फिर उनमें भिन्नता आती गयी। ऋषभ के संयमी जीवन की जो उपमाएं दी गयी हैं वे बड़ी सटीक हैं और काव्य-जगत् में बहु-प्रचलित भी। यथाः 1. कमल के पत्ते की तरह निर्लिप्त 2. पृथ्वी की तरह सहनशील 3. शरदकाल के जल की तरह शुद्ध हृदय 4. आकाश की तरह निरावलम्ब 5. पक्षी की तरह सब तरफ से मुक्त, इत्यादि। इन उपमाओं को ध्यान से देखने से प्रतीत होता है कि इनका घनिष्ठ सम्बन्ध प्रकृति के मुक्त वातावरण से है। जन-जीवन से है। ऋषभ प्रकृति की ही देन थे और जन-जीवन के लिए उनका व्यक्तित्व समर्पित था। मल्ली -चरित : श्वेताम्बर-परम्परा के अनुसार स्त्री भी तीर्थंकर हो सकती है- इस मान्यता का मूल आधार ज्ञाताधर्मकथा में वर्णित मल्ली-चरित है। कथात्मक दृष्टि से इस कथा के प्रमुख तत्व इस प्रकार है 1. महाबल एवं उसके अचल आदि छह मित्रों की घनिष्टता तथा उनके द्वारा सुख-दुःख एवं धर्मसाधना में भी साथ रहने का निश्चय। 2. सातों में महाबल की अधिक तपस्या होना और उसके फलस्वरूप उसे तीर्थंकर नामकर्म का बन्ध। ____ 3. मिथिला नगरी में महाबल का राजकुमारी मल्ली के रूप में जन्म। उसके छह साथियों की भी विभिन्न प्रदेशों में राजकुमारों के रूप में उत्पत्ति। 4. विभिन्न निमित्त पाकर उन छह राजकुमारों की मल्ली राजकुमारी के सौन्दर्य पर आसक्ति और विवाह के लिए एक साथ मिथिला पर सैन्य सहित आगमन । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003809
Book TitlePrakrit Katha Sahitya Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherSanghi Prakashan Jaipur
Publication Year1992
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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