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________________ २. कंसवहो* ( पढमो सग्गो) रआइ सिरीअ णाहो सिहि- पिछ-सेहरो सिद्धि-गोवी - अणंचलंचिओ । सअं जसोआ-तणअत्तणं गओ विहू विसावs गोव-वाडि ||१|| कह खु से कंसवहं सुहावहं सुहं व गण्हेह वले सुहीअणा । सआ गुरूणं चलणे समल्लिओ भणामि जं भक्ति-गुणेण णोल्लिओ ||२|| अहे कदा चकमिरो वअंगणे दिणंत-गो-दोहण- वावुडंगणे । सहग्गओ सो ऽहिसरतमग्गओ गदग्गओ दवखइ गंदिणी सुअं ||३|| रेहा-रह-संख-पंकअद्धअंकिदाई पुलऊण भूअले । तहिं णमंतं पुलआलि-पम्हलप्पमोअ - बाहोल्ल-विहुल्ल- विग्गहं ॥४॥ खणे खणे झाण-निमीलिएक्खणं णमंत मोलि-प्पणिवेसिअंजलि | असंभमं संभरमाणमग्गदो लसंतप्पाणमांत कोड्डुअं ॥५॥ अट्ठ- पास-वत्थु-सत्यअं असुव्वमाणुच्चलिउच्च-णिस्सणं । परं परब्बह - सुहाणुभाविणं ण बाहिरं बाहर किंपि देहिणं ॥ ६ ॥ खणं स्वंतं विहसंतमंतरा खणं च खंभं व णिरूसद्द ठिअं । खणं चरंतं खणमुच्च-जं पिअं खणं पि तुहिक्क- मुहं मआहि व ॥७॥ पमोअ-तुरंत-पद-क्कमुच्चलक्खलंत मोत्ता-गुण- फेण-मंडलो I सरि-प्पवाहं विअ संमुहागअं स पच्चुवट्ठाइ णमच्चुअंबुही ||८|| करंबुएणं परिगहिऊण णं घरं णिअं पावइ देवई -सुओ । अणाम पुच्छर मिठु-भोअणं पअच्छए कि पि अ जंपए पुणो ॥ ९ ॥ तुहावलोएण भुवीअ मे मणं विसट्टमक्कूर सिणिद्ध-बंधुणो । अहो किमच्छेरमिणं समुग्गए विहुम्मि सज्जो विअसेइ केरवं ॥ १० ॥ मुखु भो - राइणो दिन-प्पदीवा विव तिक्ख- रस्सिणो । पलिज्जमाणेण पराहृद- पहा कहं पि तुम्हे बलिणो विजीवह ||११|| * पाठ सम्पादन : डा० ए० एन० उपाध्ये, कंसवहो, मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली, १९६६ । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003808
Book TitlePrakrit Bharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1991
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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