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प्राकृत भारती अण्णं सक्कय-पायय-संकिण्ण-विहा सुवण्ण-रइयाओ। सुव्वं तिमहा-कई-पुंगवेहि विविहाउ सुकहाओ ॥३६।। ताणं मज्झे अम्हारिसेहिं अबुहेहिं जाउ सीसंति । ताउ कहाओ ण लोए मयच्छि पावंति परिहावं ।।३७।। ता किं मं उवहासेसि सुयणु असुएण सह-सत्थेण । उल्लविउं पि ण तीरइ किं पुण वियडो कहा-बंधो ॥३८।। भणियं च पिययमाए पिययम किं तेण सद्द-सत्थेण । जेण सुहासिय-मग्गोभग्गो अम्हारिस-जणस्स ।।३९॥ उवलब्भइ जेण फुडं अत्थो अकयथिएण हियएण । सो चेय परो सद्दो णिच्चो किं लक्खणेणम्ह ॥४०॥ एमेय मुद्ध-जुयई-मणोहरं पाययाए भासाए । पविरल-देसि-सुलक्खं कहसु कहं दिव्व-माणुसियं ॥४१॥ तं तह सोऊण पुणो भणियं उब्बिम-बाल-हरिणच्छि ।
जइ एवं ता सुव्वउ सुसंधि-बंधं कहा-वत्थं ॥४२॥ कहारम्भं:
चउ-जलहि-वलय-रसणा-णिबद्ध-वियडोवरोह-सोहाए सेसंक-सुप्परिट्ठिय-सव्वंगुब्बूढ-भुवणाए पलय-वराह-समुद्धरण सोक्ख-संपति-गरुय-भवाए णाणा-विह-रयणालंकियाए भयवईए पुहईए ॥४४।। णीसेस-सस्स-संपत्ति-पमुइयासेस-पामर-जणोहो सुव्वसिय-गाम-गोहण-भंभा-रव-मुहलिय-दियंतो अइ-सुहिय-पाण-आवाण-चच्चरी-रव-रमाउलारामो णीसेस-सुह-णिवासो आसय-विसहो ति विक्खाओ ॥४६॥ जो सो अविउत्तो कय-जुयस्स धम्मस्स संणिवेसो व्व । सिक्खा-ठाणं व पयावइस्स सुकयाण आवासो ॥४७।। सासणमिव पुण्णाणं जम्मुप्पत्ति व्व सुह-समूहाणं । आयरिसो आयाराण सइ सुछेत्तं पिव गुणाणं ।।४।। सुसणिद्ध-घास-संतुटु-गोहणालोय-मुइय-गोयालो । गेयारव-भरिय-दिसो वर-वल्लइ-वेणु-णिवहेसु ॥४९॥
॥४३॥
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