SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 248
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आठ कथानक २३९ कहा-'समस्त पृथ्वी में विख्यात महाराजा को कौन नहीं जानता है ?' [२३] राजा ने कहा-'उपकार-भाषणों को रहने दो। यदि जानते हो तो स्पष्ट कहो । अचल ने कहा-'देव ! अच्छी तरह नहीं जानता हूँ।' तब राजा के द्वारा देवदत्ता को बुलाया गया। वह श्रेष्ठ अप्सरा की तरह सर्वांगों पर आभषण धारण किये हुई वहाँ आयी। अचल ने उसको पहचान लिया। वह मन में अत्यधिक लज्जित हुआ। तब देवदत्ता के द्वारा कहा गया-'हे ! यह वही मूलदेव है, जिसको तुमने उस समय में कहा था कि कभी विधि के योग से मुझ पर विपत्ति आ जाने पर उपकार किया जाये। अतः यही वह अवसर है। प्रणयी दीन-जनों के प्रति वत्सल इस राजा के द्वारा धन, शरीर को संशय में डाले हुए तुमको मुक्त कर दिया गया है।' तब इसको सुनकर लज्जित मन से "महा कृपा' ऐसा कहकर वह अचल राजा और देवदत्ता के चरणों में गिर पड़ा और बोला-मेरे द्वारा जो किया गया है, वह समस्त जनों को शान्ति प्रदान करने वाले, सम्पूर्ण कलाओं से शोभित, निर्मल स्वभाव वाले पूर्णिमा के चन्द्र के लिए राहु के द्वारा किये गये अपमान की तरह है। अतः हे स्वामी ! आप मुझे क्षमा करें। आपके पीड़ित करने से क्रोधित उज्जैनी के राजा भी मुझे वहाँ प्रवेश नहीं देंगे।' (तब) मूलदेव ने कहा मेरे द्वारा तुम क्षमा कर दिये गये हो क्योंकि तुम्हें स्वयं महारानी देवदत्ता ने क्षमा कर दिया है । तब वह पुनः दोनों के चरणों में परम आदर से गिर गया। तब देवदत्ता के द्वारा उसे नहलाया गया और मूल्यवान वस्त्र पहनाये गये । राजा ने दान देकर उसे मक्त किया और उज्जैनी भेज दिया। मूलदेव राजा की प्रार्थना पर विचारधवल राजा द्वारा भी उसे क्षमा किया गया। निघृणशर्म भी मूलदेव को राज्य पर बैठा हुआ सुनकर बेन्नातट आया। उसने राजा को देखा । मूलदेव ने गुप्त-सेवा के लिए उस निघृणशर्म को ग्राम दान में दिया । नमस्कार कर और “महाकृपा" ऐसा कहकर वह गाँव को चला गया। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003808
Book TitlePrakrit Bharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1991
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy