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________________ २. चाणक्य-चन्द्रगुप्त कथानक [१] गोल्ल जिले में चणय नाम का एक ग्राम था। उसमें चणक नाम का ब्राह्मण रहता था, जो श्रावक था। एक बार उसके घर साधु ठहरे। उसके दाँतों वाला पुत्र उत्पन्न हुआ। साधुओं के पैरों में नमस्कार करवाया। उन्होंने कहा-राजा होगा । राज्य दुर्गति को प्राप्त कराने वाला जानकर उसने दाँतों को उखाड़ दिया । पुनः आचार्यों ने कहाकुछ भी करो अब भी यह प्रतिबिम्ब की तरह राजा बनेगा। उन्मुक्त बालपन बिताने के बाद चौदह शास्त्रों का अध्ययन किया गाथा १–विस्तार पूर्वक अंगों को, चार वैद, मीमांसा, न्याय, पुराण और धर्मशास्त्र इन चौदह शास्त्रों को पढ़ा। गाथा २-शिक्षा, व्याकरण, निर्युक्त, छन्द, ज्योतिष और कल्प, ये छः अंग कहे जाते हैं। [२] वह श्रावक संतुष्ट हुआ । एक दरिद्र भद्र ब्राह्मण कुल की कन्या के साथ विवाह किया । एक दिन अपने भाई के विवाह के अवसर पर वह कन्या अपने मायके गई । उसकी बहनें पहले किसी समुद्ध कूल में दी गई थी और वे आभूषणों से अलंकृत होकर आयी। सभी परिजन उनके साथ तो बोलते और आदर करते और यह एकाकी अपमानित-- सी एकान्त में स्थिर रही। बिना कुछ धन लिए दुःखी होती हुई घर आ गई। शोक से युक्त देखकर चाणक्य ने शोक का कारण पूछा तब वह कुछ नहीं बोलती हुई अपने कपोलों को आँसुओं से सींचती रही और दीर्घ श्वास छोड़ती रही। उसके द्वारा आग्रह करने पर भर्रायो आवाज में यथास्थिति कही । उस चाणक्य के द्वारा सोचा गया कि अहो ! अपमान का कारण निर्धनता है जिससे माता के घर में भी इस प्रकार का तिरस्कार होता है । अथवा गाथा ३-व्यक्ति धनवान के स्वजनत्त्व को भी प्रकाशित (प्रशंसा )करता है अर्थात् बुरे स्वजनों को भी अपना मानता है तथा अपने स्वजनों को भी लज्जित होना पड़ता है। उसी प्रकार के अनुवाद--डॉ. सुभाष कोठारी-आगम अहिंसा-समता एवं प्राकृत संस्थान उदयपुर । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003808
Book TitlePrakrit Bharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1991
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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