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________________ प्राकृत भाषा एवं साहित्य एवं कथा-ग्रन्थ दोनों है । इस ग्रन्थ में प्रतिष्ठान नगर के राजा सातवाहन एवं सिंहलद्वीप की राजकुमारी लीलावती के प्रेम की कथा वर्णित है । बीच में कई अवान्तर कथाएँ हैं। इस महाकाव्य से ज्ञात होता है कि प्रेमीप्रेमिकाएँ अपने प्रेम में दृढ़ होते थे और हर तरह की परीक्षाओं में खरे उतरते थे। तभी समाज उनके विवाह की स्वीकृति देता था। राजाओं के जीवन-चरित का इसमें काव्यात्मक वर्णन है। यह महाकाव्य काव्यशास्त्रीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है । इसमें उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, समासोक्ति आदि अलंकारों का व्यापक प्रयोग है। शृंगार और वीर रस का इसमें मनोहर चित्रण हुआ है। इन महाकाव्यों के अतिरिक्त प्राकृत में आचार्य हेमचन्द्र द्वारा रचित "द्वयाश्रयकाव्य" भी प्रसिद्ध है। इसमें प्राकृत व्याकरण के नियमों को स्पष्ट किया गया है । कुमारपाल राजा का जीवन भी इस काव्य में वर्णित है। इसी तरह श्री कृष्णलीला शुककवि ने "सिरिचिंधकव्व" नामक महाकाव्य प्राकृत में लिखा है, जिसका प्रत्येक सर्ग "श्री" शब्द से अंकित है। लगभग १३वीं शताब्दी में इसे लिखा गया है। इस प्रकार प्राकृत में महाकाव्यों की एक सशक्त परम्परा है। चरित-काव्य : प्राकृत काव्य के अन्तर्गत कुछ ऐसे भी काव्य ग्रन्थ हैं, जिनमें महापुरुषों के जीवन-चरित वर्णित हैं। ये ग्रन्थ पद्य में लिखे गये हैं। इन्हें उपदेशात्मक काव्य-ग्रन्थ कहा जा सकता है। ऐसे चरितकाव्य ईसा की तीसरी शताब्दी से १५-१६वीं शताब्दी तक लिखे जाते रहे हैं। विमलसूरि का 'पउमचरियं', 'धनेश्वरसूरि का 'सुरसुन्दरीचरियं', नेमिचन्द्रसूरि का 'महावीर चरियं तथा देवेन्द्रसूरि का 'सुदंसणाचरियं' आदि प्रमुख चरितकाव्य हैं। इन चरितकाव्यों में कथा एवं चरित के साथ-साथ प्राकृत काव्य का स्वरूप भी प्रकट किया गया है। इनका काव्यात्मक सौन्दर्य मनोहर है। कथा-काव्य: प्राकृत में कई कथा-ग्रन्थ लिखे गये हैं। उनमें से कुछ गद्य में एवं कुछ पद्य में हैं। पद्य में लिखे गये प्राकृत के कथा-काव्य काव्यात्मक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण हैं। पादलिप्तसूरि ने 'तरंगवतीकथा', जिनेश्वरसूरि ने 'निर्वाणलीलावती कथा', सोमप्रभसूरि ने 'कुमारपालप्रतिबोध', आम्रदेव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003808
Book TitlePrakrit Bharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1991
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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