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________________ प्राकृत भारती सूरि ने 'आख्यानमणिकोशवृत्ति' तथा रत्नशेखरसूरि ने 'सिरिसिरिवालकहा' आदि कथा-काव्य लिखे हैं। ये कथा-काव्य ईसा की प्रथम शताब्दी से १५वीं शताब्दी तक लिखे जाते रहे हैं। इन ग्रन्थों में कथातत्त्व एवं काव्य तत्त्व दोनों का समन्वय दृष्टिगोचर होता है । इस प्रकार प्राकृत काव्य-साहित्य की विभिन्न प्रवृत्तियाँ हैं। मुक्तक काव्य जीवन के विभिन्न अनुभवों से परिचित कराते हैं। खण्डकाव्य चरित नायकों के विशिष्ट जीवन का चित्र प्रस्तुत करते हैं। महाकाव्यों में जीवन के विभिन्न अनुभवों और वस्तुजगत् का काव्यात्मक वर्णन प्राप्त होता है। चरितकाव्य महापुरुषों के प्रेरणादायक चरितों की काव्यात्मक अनुभति देते हैं। कथा-काव्य कल्पना और सौन्दर्य का समन्वित आनन्द प्रदान करते हैं। प्राकृत-काव्य-साहित्य की ये सब विधाएँ भारतीय साहित्य के भण्डार को समृद्ध करती हैं। (घ) प्राकृत का गद्य साहित्य प्राकृत भाषा में ई० पू० छठी शताब्दी से साहित्य की रचना होने के उल्लेख हैं। भगवान् महावीर ने जो उपदेश दिये थे, उनका संकलन पद्य एवं गद्य दोनों में किया गया है । अतः रचना की दृष्टि से आगम प्राकृत साहित्य प्राचीन है। प्राकृत गद्य के प्राचीन नमूने आगम साहित्य में उपलब्ध हैं। छोटे-छोटे वाक्यों, सूक्तियों से प्रारम्भ होकर समासयुक्त शैली में बड़े-बड़े गद्य भी प्राकृत आगम के ग्रन्थों में उपलब्ध हैं। आचारांगसूत्र की सूक्तियाँ प्राकृत गद्य की आधारशिला कही जा सकती हैं। अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्या करते हुए इसमें कहा गया है : अरिहंता एवं परूवेति--सम्वे पाणा सवे भूता सव्वे जीवा सम्व सत्ता ण हतब्वा, ण अज्जावेयव्वा, ण परिघेतम्वा, ण परितावेयव्वा, ण उद्धवेयव्वा । एस धम्मे सुद्धे णिइए सासए समिच्च लोयं खेयणहिं पवेइए। भगवतीसूत्र, ज्ञाताधर्मकथा, उपासगदशांग, विपाकसूत्र, रायपसेणिय, निरयावली आदि आगम ग्रंथों में प्राकृत गद्य की प्रौढ़ शैली देखने को मिलती है। इनमें समासपद एवं काव्यात्मक भाषा का प्रयोग हुआ है। राजा प्रसेनजित् अपनी सम्पति के चार भाग करते हुए कहता है____ अहं णं सेयवियानयरी पमाक्खाइं सत्त गामसहस्साई चतारि भागे करिस्सामि । एगं भागं बलवाहणस्स दलइस्सामि, एगं भागं कोडागारे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003808
Book TitlePrakrit Bharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1991
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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