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________________ १२ प्राकृत भारती के आधार पर इसका नाम "सेतुबन्ध" अथवा "रावणवहो" प्रचलित हुआ है। टीकाकार रामदास भूपति ने इसे "रामसेतू" भी कहा है। महाकवि ने सेतु-रचना के वर्णन में ही अधिक उत्साह दिखाया है। अतः "सेतुबन्ध" इसका सार्थक नाम है। "रावणवध" को इस काव्य का फल कहा जा सकता है। सेतुबन्ध महाकाव्य में कुल १२९१ गाथाएँ प्राप्त होती हैं, जो आश्वासों में विभक्त हैं। इसकी भाषा महाराष्ट्री प्राकृत है। आश्वासों के अन्त में “पवरसेण विरइए" पद प्राप्त होता है। अतः इसके रचयिता महाकवि प्रवरसेन हैं। गउडव हो-प्राकृत के महाकाव्यों में "गउडवहो" का महत्वपूर्ण स्थान है। लगभग ई० सन् ७६० में महाकवि वाक्पतिराज ने गउडवहो की रचना की थी। वाक्पतिराज कन्नौज के राजा यशोवर्मा के आश्रय में रहते थे। उन्होंने इस काव्य में यशोवर्मा के द्वारा गौड़ देश के किसी राजा के वध किये जाने का वर्णन किया है। इसलिए इसका नाम 'गउडवध" रखा है । इस दृष्टि से यह एक ऐतिहासिक काव्य भी है। “गउडवहो' में प्रारम्भ में विभिन्न देवी-देवताओं को ६१ गाथाओं से नमस्कार किया गया है। और इसके बाद ९८ गाथा तक वाक्पतिराज ने महाकवियों और उनके काव्य के समरूप पर प्रकाश डाला है । इस प्रसंग में उन्होंने प्राकृत भाषा और प्राकृत काव्य के महत्त्व को भी स्पष्ट किया है। ___ इसके बाद कवि ने महाकाव्य के नायक यशोवर्मा के जीवन का वर्णन किया है। प्रसंग के अनुसार इस काव्य में प्रकृति-चित्रण, विजययात्रा का वर्णन तथा वस्तूवर्णन आदि किये गये हैं । इन वर्णनों से ज्ञात होता है कि कवि ने लोक को बहुत सूक्ष्मता से देखा था। अतः उनकी अनुभूतियाँ व्यापक थीं । ग्रन्थ में अनेक अलंकारों का प्रयोग किया गया है । श्यामल शरीर वाले कृष्ण पीताम्बर पहिने हुए दिन और रात्रि के मिलन-स्थल सायंकाल के समान प्रतीत होते हैं, इस दृश्य को कवि ने इस प्रकार कहा है तं णमह पोय-वसण जो वहइ सहाव-सामलं-च्छायं । दिअस-णिसा-लय-ग्गिम-विहाय-सवलं पिव सरीरं॥ लोलावईकहा-लगभग ९वीं शताब्दी में महाकवि कोऊहल ने "लीलावईकहा" नामक महाकाव्य की रचना की है। यह प्राकृत का महाकाव्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003808
Book TitlePrakrit Bharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1991
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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