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________________ प्राकृत भाषा एवं साहित्य कथानक की दृष्टि से खण्डकाव्य कहा जा सकता है। कुम्मापुत्तचरियं इसी प्रकार का खण्डकाव्य है । लगभग १६वीं शताब्दी में जिनमाणिक्य के शिष्य अनन्तहंस ने इस ग्रन्थ की रचना की थी। इस ग्रन्थ में कुल १९८ गाथाएँ प्राप्त हैं । कुम्मापुत्तचरियं में राजा महेन्द्रसिंह और उनकी रानी कूर्मा के पुत्र धर्मदेव के जीवन की कथा वर्णित है। प्रारम्भ में दुर्लभकुमार नामक राजपुत्र को भद्रमुखी नामक यक्षिणी अपने महल में ले जाती है, और बाद में एक महात्मा के द्वारा उस कुमार के पूर्व-जन्म का वृत्तान्त कहा जाता है। इस ग्रन्थ में दान, शील, तप और भाव-बुद्धि के महत्व को प्रतिपादित किया गया है। इसी प्रसंग में कई छोटे-छोटे उदाहरण भी प्रस्तुत किए गये हैं । मनुष्य-जन्म की सार्थकता बतलाते हए कहा गया है कि जिस प्रकार असावधानी से हाथ में रखा हुआ रत्न समुद्र में गिर जाने पर फिर नहीं मिलता है, उसी प्रकार व्यर्थ के कामों में मनुष्य-जन्म को व्यतीत कर देने पर अच्छे कार्य करने के लिए दुबारा मनुष्य-जन्म नहीं मिलता है । इस ग्रंथ की भाषा बहुत सरल है और संवाद-शैली में कथा को आगे बढ़ाया गया है। महाकाव्य : ___ महाकाव्य में जीवन की सम्पूर्णता को विभिन्न आयामों द्वारा उद्घाटित किया जाता है । प्राकृत में रसात्मक महाकाव्य कम ही लिखे गये हैं । किन्तु जो महाकाव्य उपलब्ध हैं, वे अपनी विशेषताओं के कारण महाकाव्य के क्षेत्र में अपनी अमिट छाप छोड़ते हैं। उनकी काव्यात्मकता और प्रौढ़ता के कारण उन्हें प्राकृत के शास्त्रीय महाकाव्य कहा जा सकता है। इस रसमयता के कारण वे प्राकृत के अन्य कथा एवं चरित ग्रथों से अपना भिन्न स्थान रखते हैं । ऐसे प्राकृत के उत्कृष्ट महाकाव्य हैं-(१) सेतुबन्ध, (२) गउडवहो, (३) लीलावईकहा एवं (४) द्वयाश्रयकाव्य । प्राकृत के ये चारों महाकाव्य ईसा की ४-५वीं शताब्दी से १२वीं शताब्दी तक की प्राकृत कविता का प्रतिनिधित्व करते हैं। सेतुबन्ध (रावणवहो)-प्राकृत का यह प्रथम शास्त्रीय महाकाव्य है । इसमें राम कथा के एक अंश को प्रौढ़ काव्यात्मक शैली में महाकवि प्रवरसेन ने प्रस्तुत किया है। वाल्मीकि रामायण के युद्ध काण्ड की कथावस्तु सेतुबन्ध के कथानक का आधार है। इस महाकाव्य में मुख्य रूप से दो घटनाएँ हैं-सेतुबन्ध और रावणवध । अतः इन दोनों प्रमुख घटनाओं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003808
Book TitlePrakrit Bharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1991
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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