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________________ १९६ प्राकृत भारती [१५] तत्पश्चात् उस कछुए ने उन पापी सियारों को चिरकाल से गया और दूर गया जान कर धीरे-धीरे अपनी ग्रीवा बाहर निकाली। ग्रीवा निकाल कर सब दिशाओं का अवलोकन किया। अवलोकन करके एक साथ चारों पैर बाहर निकाले और उत्कृष्ट कूर्मगति से अर्थात् कछुए के योग्य अधिक से अधिक तेज चाल से दौड़ता-दौड़ता जहाँ मृत-गंगातीर नामक हृद था, वहाँ आ पहुँचा ! वहाँ आकर मित्र ज्ञाति निजक, स्वजन. सम्बन्धी और परिजन के साथ मिल गया। (ख) तुम्बक दृष्टान्त (छठा अध्ययन) [१] श्रीजम्बू स्वामी ने सुधर्मा से प्रश्न किया-“भगवन् ! यदि श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धि को प्राप्त ने पाँचवे ज्ञाताध्ययन का यह अर्थ कहा है, तो हे भगवन् ! छठे ज्ञाताध्ययन का श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धि को प्राप्त ने क्या अर्थ कहा है ?' [२] श्रीसुधर्मा स्वामी ने जम्बू स्वागी के प्रश्न के उत्तर में कहा-'हे जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था। उस राजगृह नगर में श्रेणिक नामक राजा था। उस राजगृह नगर के बाहर उत्तर-पूर्व दिशा में ईशान कोण में गुणशील नामक चैत्य (उद्यान) था। [३] उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर अनुक्रम से विचरते हुए, जहाँ राजगृह नगर था और जहाँ गुणशील चैत्य था, वहाँ पधारे । यथा योग्य अवग्रह ग्रहण करके संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे। भगवान् को वन्दना करने के लिए परिषद् निकली। श्रेणिक राजा भी निकला। भगवान् ने धर्म कहा । उसे सुनकर परिषद् वापिस चली गई। [४] उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर के ज्येष्ठ शिष्य इन्द्रभूति नाम अनगार न अधिक दूर और न अधिक समीप स्थान पर यावत् शुक्ल ध्यान में लीन होकर विचर रहे थे । उस समय, जिन्हें, श्रद्धा उत्पन्न हुई है ऐसे इन्द्रभूति अनगार ने श्रमग भगवान् महावीर स्वामी से इस प्रकार कहा-"भगवन् ! किस प्रकार जीव शीघ्र ही गुरुता अथवा लघृता को प्राप्त होते हैं ?" [५] 'हे गौतम ! यथानामक-कुछ भी नाम वाला, कोई पुरुष एक बड़े सूखे, छिद्ररहित और अखंडित तूंबे को दर्भ (ढाभा) से और कुश (दूब) से लपेटे और फिर मिट्टी के लेप से लीये फिर धूप में रख दे। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003808
Book TitlePrakrit Bharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1991
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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