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________________ ज्ञाताधर्म कथा १९५ [११] उन दोनों में से एक कछुए ने उन पापी सियारों को बहुत समय पहले और दूर गया जान कर धीरे-धीरे अपना एक पैर बाहर निकाला । तत्पश्चात् उन पापी शृगालों ने देखा कि उस कछुए ने धीरे-धीरे एक पैर निकाला है । यह देख कर वे दोनों उत्कृष्ट गति से शीघ्र चपल, त्वरित, चंड, जय और वेगयुक्त रूप से जहाँ वह कछुआ था, वहाँ आये । आकर उन्होंने कछुए का वह पैर नाखूनों से विदारण किया और दाँतों से तोड़ा । तत्पश्चात् उसके मांस और रक्त का आहार किया । आहार करके वे कछुए को उलटपलट कर देखने लगे, किन्तु यावत् उसकी चमड़ी छेदने में समर्थ न हुए । तब वे दूसरी बार हट गये । इसी प्रकार क्रमशः चारों पैरों के विषय में कहना चाहिए । फिर उस कछुए ने ग्रीवा बाहर निकाली । उन पापी सियारों ने देखा कि कछुए ने ग्रीवा बाहर निकाली है । यह देख कर शीघ्र ही उसके समीप आये । उन्होंने नाखूनों से विदारण करके और दाँतों से तोड़ कर उसके कपाल को अलग कर दिया । अलग करके कछुए को जीवन-रहित कर दिया । जीवन रहित करके उसके मांस और रुधिर का आहार किया । [१२] इसी प्रकार हे आयुष्मन् श्रमणों ! हमारा जो निग्रन्थ अथवा निग्रन्थी आचार्य या उपाध्याय के निकट दीक्षित होकर पांचों इन्द्रियों का गोपन नहीं करते हैं, वे इसी भव में बहुत साधुओं, साध्वियों, श्रावकों और श्राविकाओं द्वारा होलना करने योग्य होते हैं और परलोक में भी बहुत दंड पाते हैं, यावत् अनन्त संसार में परिभ्रमण करते हैं, जैसे अपनी इन्द्रियों का गोपन न करने वाला वह कछुआ मृत्यु को प्राप्त हुआ । [१३] तत्पश्चात् वे दोनों पापी सियार जहाँ दूसरा कछुआ था, वहाँ आये । आकर उस कछुए को चारों तरफ से, सब दिशाओं से उलट-पलट कर देखने लगे, यावत् दाँतों से तोड़ने लगे, परन्तु यावत् उसकी चमड़ी का छेदन करने में समर्थ न हो सके । [१४] तत्पश्चात् वे पापी सियार दूसरी बार और तीसरी बार दूर चले गये किन्तु कछुए ने अपने अंग बाहर न निकाले, अतः वे उस कछुए hot कुछ भी आबाधा या विबाधा अर्थात् थोड़ी या बहुत पीड़ा न कर सके यावत् उसकी चमड़ी छेदने में भी समर्थ न हो सके। तब वे श्रान्त, तान्त और परितान्त होकर तथा खिन्न होकर जिस दिशा से आये थे, उसी दिशा में लौट गये । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003808
Book TitlePrakrit Bharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1991
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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