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________________ १९४ प्राकृत भारती कोई विरले मनुष्य ही चलते-फिरते थे और सब मनुष्य अपने-अपने घरों में विश्राम कर रहे थे अथवा सब लोग चलने-फिरने से विरत हो चुके थे, तब आहार के अभिलाषीदो कछुए निकले। वे मृतगंगातीर हद के आसपास चारों ओर फिरते हुए अपनी आजीविका करते हुए विचरण करने लगे। [६] तत्पश्चात् आहार के अर्थी यावत् आहार की गवेषणा करते हुए वे दोनों पापी शृगाल मालुकाकच्छ से बाहर निकले । निकल कर जहाँ मृतगंगातीर नामक हृद था, वहाँ आये । आकर उसी मृतगंगातीर हद के पास इधर-उधर चारों ओर फिरने लगे और आजीविका करते हुए विचरण करने लगे। [७] तत्पश्चात् उन पापी सियारों ने उन दो कछुओं को देखा। देखकर जहाँ दोनों कछुए थे, वहाँ आने के लिए प्रवृत्त हुए। [८] तत्पश्चात् उन कछुओं ने उन पापी सियारों को आता देखा। देखकर वे डरे, त्रास को प्राप्त हुए, भागने लगे, उद्वेग को प्राप्त हुए और बहुत भयभीत हुए। उन्होंने अपने हाथ, पैर और ग्रीवा को अपने शरीर में गोपित कर लिया, छिपा लिया। गोपन करके निश्चल, निस्पंद (हलन-चलन से रहित) और मौन रह गये। [९] तत्पश्चात् वे पापी सियार जहाँ वे कछए थे, वहाँ आये। आकर उन कछुओं को सब तरफ से फिराने लगे, स्थानान्तरित करने लगे, सरकाने लगे, हटाने लगे, चलाने लगे, स्पर्श करने लगे, हिलाने लगे, क्षुब्ध करने लगे, नाखूनों से फाड़ने लगे और दाँतों से चीथने लगे, किन्तु उन कछुओं के शरीर को थोड़ी बाधा, अधिक बाधा या विशेष बाधा उत्पन्न करने में अथवा उनकी चमड़ी छेदने में समर्थ न हो सके। [१०] तत्पश्चात् उन पापी सियारों ने इन कछुओं को दूसरी बार और तीसरी बार सब ओर से धुमाया-फिराया, किन्तु यावत् उनकी चमडी छेदने में समर्थ न हुए। तब वे श्रान्त हो गये शरीर से थक गये, तान्त हो गये—मानसिक ग्लानि को प्राप्त हुए और शरीर तथा मनदोनों से थक गये तथा खेद को प्राप्त हुए। धीमे-धीमे पीछे लौट गये। एकान्त में चले गये और निश्चल, निस्पंद तथा मूक होकर ठहर गये। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003808
Book TitlePrakrit Bharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1991
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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