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________________ ज्ञाताधर्म कथा १९७ सूख जाने पर दूसरी बार दर्भ और कुश से लपेटे और फिर मिट्टी के लेप से लीप दे। लीप कर धूप में सूख जाने पर तीसरी बार दर्भ और कुश से लपेटे और लपेट कर मिट्टी का लेप चढ़ा दे। इसी प्रकार, इसी उपाय से बीच-बीच में दर्भ और कुश से लपेटता जाय, बीच-बीच में लेप चढ़ाया जाय और बीच-बीच में सुखाता जाय, यावत् आठ मिट्टी के लेप उस तूंबे पर चढ़ावे । फिर उसे अथाह, जिसे तिरा न जा सके अपौरुषिक (जिसे पुरुष की ऊँचाई से नापा न जा सके) जल में डाल दिया जाय । तो निश्चय ही हे गौतम! वह तूंबा मिट्टी के आठ लेपों के कारण गुरुता को प्राप्त होकर भारी होकर तथा गुरु एवं भारी होकर ऊपर रहे हुए जल को लाँघ कर, नीचे धरती के तल भाग में स्थित हो जाता है। [६] इसी प्रकार हे गौतम ! जीव भी प्राणातिपात से यावत् मिथ्यादर्शन शल्य से अर्थात् अठारह पापस्थानकों के सेवन से क्रमशः आठ कर्मप्रकृतियों का उपार्जन करते हैं। उन कर्मप्रकृतियों की गुरुता के कारण, भारीपन के कारण और गुरुता के भार के कारण, मृत्यु के समय मृत्यु को प्राप्त होकर, इस पृथ्वीतल को लाँघकर नीचे नरक तल में स्थित होते हैं। इस प्रकार हे गौतम! जीव शीघ्र गुरुत्व को प्राप्त होते हैं। [७] अब हे गौतम ! उस तूंबे का पहला (ऊपर का) मिट्टी का लेप गीला हो जाय, गल जाय और परिशटित (नष्ट) हो जाय तो वह तूंबा पथ्वी तल से, कुछ ऊपर आकर ठहरता है, तदनन्तर दुसरा मतिकालेप हट जाय तो तूंबा कुछ और ऊपर आ जाता है। इस प्रकार इस उपाय से उन आठों मतिका लेपों के गीले हो जाने पर यावत् हट जाने पर तूंबा बन्धन मुक्त होकर धरणीतल को लाँघ कर ऊपर जल की सतह पर स्थित हो जाता है। [८] इसी प्रकार हे गौतम! प्राणातिपातविरमण यावत् मिथ्यादर्शनशल्यविरमग से क्रमशः आठ कर्मप्रकृतियों को खपा कर आकाशतल की ओर उड़कर लोकाग्र भाग में स्थित हो जाते हैं। इस प्रकार हे गौतम ! जीव शीघ्र लघुत्व को पाते हैं।' [९] श्री सुधर्मास्वामी अध्ययन का उपसंहार करते हुए कहते हैं- "इस प्रकार हे जम्बू! श्रमण भगवान् महावीर ने छठे ज्ञाताध्ययन का यह अर्थ कहा है। वही मैं तुमसे कहता हूँ।" Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003808
Book TitlePrakrit Bharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1991
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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