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________________ निचन्द कथानक १६९ तुम्हारे द्वारा ये तीनों और मैं भी रक्षा किया जाऊँ । और भी जन्म से लेकर भय के स्वरूप को न जानने वाले आपके लिए क्या कहा जाय । तो तुम्हारी अनुकम्पा से मैं साधना करता हूँ । तब मैंने कहा'हे भगवन् ! आप विश्वासपूर्वक साधना करिए । तुम्हारे सिर के to को भी झुकाने में कौन समर्थ है।' इस बात को सुनकर उनके द्वारा मंडप ग्रहण किया गया और उसके मुख पर अग्नि जला दी गई तथा मंत्र जाप पूर्वक होम प्रारम्भ हो गया । [९] तब सियाल बोलने लगे, बेतालगण खिलखिलाने लगे, महाडाकनी घूमने लगी, महातूफान उठने लगे, मंत्र जाप चलता रहा किन्तु तीनों लोग विचलित नहीं हुए। जब तक मैं उत्तर दिशा में तलवार लिए हुए बैठा था, तभी तीनों भुवनों को बहरा करता हुआ, प्रलय के बादल की गर्जना का अनुसरण करने वाला पर्वतों की गुफाओं को भरता हुआ शोरगुल उछला। अचानक पास में ही पृथ्वीमण्डल फट गया । सिंहनाद छोड़ता हुआ प्रलयकाल के मेघ की तरह काला कुटिल और काले बाल वाला एक व्यक्ति उपस्थित हुआ । उसकी सिंहनाद से दिशाओं में स्थित वे तीनों व्यक्ति गिर पड़े। तब उसने कहा कि अरे ! अप्सराओं के कामी अधार्मिक शैवाचार्य तुम्हारे द्वारा यहाँ पर निवास करते हुए मेघनाद नामक मुझ क्षेत्रपाल को नहीं जाना गया। मेरी पूजा को न करके मंत्र सिद्धि चाहते हो ? अब यह कुछ नहीं होगा और तुम्हारे द्वारा बुलाया गया यह राजपुत्र अपने अविनय के फल को अनुभव करे ।' तब मैंने उसको देखकर कहा कि 'अरे अधर्म पुरुष ! यह क्या प्रलाप करते हो ? यदि तुम्हारा पौरुष है तो इस प्रलाप से क्या ? सामने आओ, जिससे तुम्हारी गर्जना का फल देखता हूँ । क्योंकि पुरुष की भुजाओं में ही बल होता है, शब्दोच्चारण में नहीं ।' तब क्रोधित वह पुरुष मेरे सामने आया । उसे बिना शस्त्र के देखकर मैंने अपनी तलवार को छोड़ दिया । केसबन्धन के साथ पहने हुए वस्त्रों को भी सँभाल लिया गया । विभिन्न प्रकार के दाँव और हाथ के प्रहार से युद्ध होने लगा । इस प्रकार से लड़ते हुए मेरे द्वारा वह दुष्ट क्षेत्रपाल गिरा दिया गया । शक्ति की प्रधानता से उसको वश में कर लिया गया। उसने कहा - 'हे महापुरुष ! तुम मुझे छोड़ दो। तुम्हारी इस महाशक्ति के द्वारा मैं सिद्ध कर लिया गया हूँ। तो कहो, तुम्हारे लिए क्या किया जाय ?' ऐसा कहने पर मैंने कहा कि जो यह जटा - Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003808
Book TitlePrakrit Bharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1991
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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