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कहाणय अठ्ठगं
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तं सोउ नरनाहो विम्हिय-हियओ गए अजियसेणे । निय-नम्म-मंति-मण्डलमालवइ वियार-सारमिण ॥१९॥ जं अजियसेण-सचिवेण जंपियं तं किमित्थ संभवइ । कामंकुरेण वुत्तं कत्तो सोलं महिलियाणं ॥२०॥ ललियंगएण भणियं सच्चं कामंकुरो भणइ एयं । रइ-केलिणा पलित्तं देवस्स किमित्थ संदेहो ॥२१॥ भणियमसोगेणं पट्ठवेसु मं देव ! जेण सीलमइं। वियलिय-सीलं काउ देवस्स हरामि संदेहं ।।२२।। तो नरवइणा एसो आइट्ठो अप्पिऊण बहु दव्वं । पत्तो य नंदणपुरे सीलवईए गिहासन्ने ॥२३॥ गिहाइ गरुयं गेहं कंठ-पघोलंत-पंचमुग्गारो। किन्नर-गीयाणुगुणं गायइ गीयं गवक्ख-गओ ॥२४॥ पयडिय-उज्जल-वेसो पलोयए साणुराय-दिट्ठीए। निच्चं पयासए चाय-भोय-दुलल्लियमप्पाणं ॥२५।। एवं बहु-प्पयारे कुणइ वियारो इमो तो एसा । चिंतइ नूणं मह सील-खलणमिच्छइ इमा काउं ॥२६॥ फणि-फण-रयणुक्खणणं व जलण-जालावली कवलणं व।
केसरि-केसर-गहण व दुक्करं तं न मुणइ जडो ॥२७॥ [१५] पिच्छामि ताव कोउगं ति विचितिऊण पयट्टा तं पलोइउं ।' असोगो वि सिद्धं मे समोहियं ति मन्नंतो पट्ठवेइ दुई। भणिया तीए सोलमई-"भट्टे, कुसुमं व थोव-काल-मणहरं जुव्वणं । ता इमं विसयसेवणेण सहलं काउजुत्तं । भत्ता य तह रन्ना समं गओ | एसो य सुहओ तुमं पत्थेइ ।' तीए चितियं-"सु-हो त्ति सुठ्ठहओ वराओ जो एरिसे पावे पयट्टइ।" दूईए भणियं-पसयच्छि, पसीयसु मयण-जलण-जाला कलाव संतत्तं ।"
निय अंग-संगमामय-रसेण निव्ववसु मम गत्तं । सोलमईए वुत्तं-जुत्तमिणं, किं तु पर-पुरिस-संगो॥ ८॥ कुल-महिलाण अजुत्तो दव्व-पसंग व्व साहूणं । नवरं इमो वि कीरइ जइ लब्भइ मग्गियं धणं कहवि ॥२९।। उचिट्ठ पि हु भत्तं भक्खिज्जइ नेह लोहेण ।। तीए-वुत्तं-मग्गसि कित्तियमित्तं धणं तुमं भद्दो ॥३०॥ सीलमई जंप अद्ध-लक्खमिद्धि समप्पेउ । गहिऊण अद्ध-लक्खं निसाइ पंचम-दिणे सयं एउ ॥३१॥
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