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7. इसलिए (समवाय) ही साधु (श्रेष्ठ) है । कैसे ? एक दूसरे के धर्म को सुनना
और सुनाना चाहिए । ऐसी ही देवानांप्रिय की इच्छा है । कैसी ? कि सभी सम्प्रदाय बहुश्रुत हों और कल्याणगामी हों।
जो अपने अपने सम्प्रदाय में अनुरक्त हों, वे (दूसरे से) कहें--देवानांप्रिय दान और पूजा को उतना नहीं मानते जितना कि इस बात को कि सब सम्प्रदायों में सार की वृद्धि हो।
9.
इस प्रयोजन के लिये बहुत से धर्ममहामात्र, और स्त्री-अध्यक्ष-महामात्र, व्रजभमिक (यात्री-रक्षक) और अन्य (अधिकारी) वर्ग नियुक्त हैं । इसका यह फल है कि अपने सम्प्रदाय की वृद्धि और धर्म का दीपन (प्रचार ) होता है।
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.प्राकृत गद्य-सोपान
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